


१२
भारती पंडित की कहानी
"पूर्णाहुति"

... इनकी पहली पुस्तक की तैयारी हो रही है| मुझे काफी वक्त होता है तो थोड़ा प्रूफ देख लेती हूँ शारदा ने जवाब दिया|
मैंने यूँ ही रचनाओं को टटोला तो प्रूफ का मतलब मुझे बखूबी समझ में आ गया|
तुम्हारे लेखन का क्या हुआ? मैंने पूछा
अब गृहस्थी के झमेले में लिखना सूझता ही कहाँ है| अब तो इन्हीं की सफलता की कामना करती रहती हूँ|
एक पतिव्रता पत्नी का कर्तव्य सफलता से निर्वाह कर रही थी शारदा मगर क्या इस सबके लिए पति की नजरों में कोई मान सम्मान था? क्या ये औरतें सचमुच अपने साथ हो रहे अन्याय को समझ नहीं पातीं? क्या घुट्टी पिलाई जाती हैं इन्हें कि सब कुछ बस चुप हो सहती जाती हैं? इन्हीं प्रश्नों को मन में लिए मैं वहाँ से चला आया था| उसके बाद वीरेन का फोन आया, मुझसे न मिल पाने का अफसोस था उसे| अपनी पुस्तक का भी जिक्र करता रहा| ...