मनोहर चमोली से बातचीत
4 अप्रैल 2016
ई-कल्पना - आप पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले हैं. हिन्दी के अनेकों महान लेखक पहाड़ों की गोद में पले-बड़े हुए हैं. आपके परिवेश का आपके लेखन पर क्या प्रभाव है
म.च. - रचना लिखते समय किसी भी रचना का जन्म या तो रचनाकार के अपने अनुभव के आधार पर होता है या देखे गए या दूसरे के अनुभव के आधार पर उसका जन्म होता है। कहानी में देशकाल,वातावरण,पात्र और परिस्थितियां भी रचनाकार के आस-पास के परिवेश से अधिक प्रभावित होती है। पहाड़ प्रकृति की गोद में है। मुझे लगता है कि हम पहाड़ में रहने वाले प्रकृति को नजदीक से देख पाते हैं। पेड़,पहाड़,नदी,खुला आसमान, बादल,तारे और धरती के जीवों से हमारा अधिक सरोकार रहता है। कुछ फोटो साथ में सलंग्न हैं।
ई-कल्पना - आपकी बाल कहानियों के संग्रह ‘अन्तरिक्ष से आगे बचपन’ को उत्तराखण्ड बालसाहित्य संस्थान से पुरस्कृत किया गया था. बाल साहित्य में वर्ष 2011 का पं॰प्रताप नारायण मिश्र सम्मान मिल चुका है. बालो कहानियों का दूसरा संग्रह ‘जीवन में बचपन’ प्रकाशनाधीन है.
बाल साहित्य लिखने की ख़ास वजह ... (जैसे किपलिंग ने अपनी जस्ट सो स्टोरीज़ अपनी बेटी के लिये लिखी थी... वगैरह)
म.च. - मैं नौ से पन्द्रह साल के बच्चों के साथ भाषा की कक्षा में अधिक समय बिताता हूं। अपने बचपन में भी और आज के बच्चों के बचपन में भी बच्चों की यथार्थपरक दुनिया से जुड़ी कहानियां आसानी से नहीं मिलती। यही कारण है कि भाषा की कक्षा में समय बिताते हुए हमेशा लगता है कि ऐसी कहानियों का लेखन हो सके जो बच्चों को पाठ से आगे ले जाए और इस दुनिया के यथार्थ से भी परिचित कराए। इक्कीसवीं सदी में यह और भी चुनौतीपूर्ण है जब उच्च तकनीक के चलते पढ़ना लिखना और भी कम हो रहा है। बच्चों को भी नब्बे प्रतिशत लाने का दबाव बढ़ता जा रहा है। मुझे लगता है कि यदि समग्र समतामूलक समाज चाहिए तो बच्चों के लिए उत्कृष्ट साहित्य चाहिए ही।
ई-कल्पना - आपने लिखा है, “ … गांव में अत्याधुनिक सुख-सुविधाएं पसर जाएं, खान-पान, रहन-सहन, बोली-भाषा, आचार-व्यवहार, रीति-रिवाज सब कुछ शहरों-सा हो जाए, तब भी, गांव हमेशा गांव ही रहते हैं. गांव में ऐसा कुछ होता है, जो उन्हें शहर नहीं होने देता ...”
गाँव में ऐसा क्या है जो आप हर हाल में मिटाना चाहते हैं. अगर गाँव एकदम शहर से लगें, तो दोनों जगहें एक सी होंगी, गाँव नहीं रहेंगे, सब शहर होगा, उस हाल में आप गाँव की किस बात को याद करेंगें.
म.च. - गांव में गरीबी है। पिछड़ापन है। पढ़ने-लिखने के विकल्प सीमित हैं। गांव में पीने का पानी भी मयस्सर नहीं है। गांव में अभाव है। यह सब मिटे तो बात बने।
यदि सारे गांव एक से हो जाए। यदि एक सा होना शहर की सुविधा और चकाचैंध को ही मान लिया जाए तो कुछ ऐसी चीज़ें गांव से बने शहरों में हो जाएंगे जो गांव की याद दिलाएगी। उस हाल में मैं गांव की कई सारी बातों को याद करूंगा। सामूहिकता और सामुदायिकता का भाव जो शहरों में नहीं दीखता। आज भी गांव में बच्चे के जन्मदिन को, विवाह को, किसी की मौत को व्यक्तिगत नहीं सामूहिक सहभागिता के साथ मनाया जाता है। गांव में सब एक दूसरे को जानते हैं। किसी के आने की और किसी के जाने की सूचना को हर कोई जानता है। साल भर आने वाले त्योहारों को पूरे उत्सव के साथ मनाया जाता है। वसंत के आगमन को भी पूरा गांव उल्लास के साथ मनाता है। होली हो या दीवाली या फिर सावन का महीना। ये आज भी गांव में खुशी से आते हैं। शहर में हर घर में एक नहीं कई कई दुनिया कमरों में सीमित है। गांव में पूरा गांव एक दुनिया है। इसकी याद तो आएगी ही। शहर में आटे और चावल में गेंहू और धान की खुशबू नहीं आती। दही और दूध में गाय के रंभाने का भाव नहीं दीखता। यह सब तो याद आएगा ही।
लेखक परिचय: मनोहर चमोली ‘मनु’: ‘ऐसे बदली नाक की नथ’ और ‘पूछेरी’
पुस्तकें नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित हुई हैं। ‘चाँद का स्वेटर’ और
‘बादल क्यों बरसता है?’ पुस्तके रूम टू रीड से प्रकाशित हुई हैं। बाल
कहानियों का संग्रह ‘अन्तरिक्ष से आगे बचपन’ उत्तराखण्ड बालसाहित्य
संस्थान से पुरस्कृत। बाल साहित्य में वर्ष 2011 का पं॰प्रताप नारायण
मिश्र सम्मान मिल चुका है। बाल कहानियों का दूसरा संग्रह ‘जीवन में बचपन’
प्रकाशनाधीन है। पच्चीस से अधिक कहानियों की बाल पुस्तकों का मराठी में
अनुवाद हो चुका है। उत्तराखण्ड में कहानी ‘फूलों वाले बाबा’ कक्षा पाँच
की पाठ्य पुस्तक ‘बुराँश’ में शामिल। पाठ्य पुस्तक ‘बातों की फुलवारी’
भाग 5 में नाटक मस्ती की पाठशाला शामिल। उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग में
शिक्षक हैं। सम्पर्क: भितांई, पोस्ट बाॅक्स-23,पौड़ी, पौड़ी
गढ़वाल.246001.उत्तराखण्ड. मोबाइलः 09412158688. ई-मेल: chamoli123456789@gmail.com