नारी तुम हो कितनी महान , जग जननी का श्रृंगार तुम्हें l मिट्टी से जैसे सोना उपजे , धरती सा कहें धनवान तुम्हें l
सीना सपाट वसुधा सम है , विशाल ह्रदय, सागर जैसा l छूने से छुई मुई बन जाती , यह शौर्य, शक्ति जादू कैसा ?
न कभी, अरि तुम्हारा कोई हो , न + अरि किसी की तुम बनना l झुक जाना कर्तव्य की बेदी पर , पर अन्याय, पाप में मत झुकना l
तुम्हें सीमा में बाँध दिया नर ने , पर तुम असीम की पर्याय बनो l ईश्वर की अनमोल धरोहर कहते , सुह्रदय, विचारक, सर्वश्रेष्ठ बनो l
Kavita Gupta