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हरि जोशी

जिव्हा का वर्चस्व रहेगा - लघु कथा


जिव्हा का वर्चस्व रहेगा

पंक्तिबद्ध और एकजुट रहने के कारण दांत बहुत दुस्साहसी हो गए थे |एक दिन वे गर्व में चूर होकर जिव्हा से बोले “हम बत्तीस घनिष्ट मित्र हैं एक से एक मज़बूत |और तू ठहरी अकेली ,न चाहें तो तुझे बाहर ही न निकलने दें |”

जिव्हा ने पहली बार ऐसा कलुषित विचार सुना |वह अब हंसकर बोली “अच्छा ऊपर से एकदम सफ़ेद और स्वच्छ हो पर मन से बड़े कपटी हो |”

“ऊपर से स्वच्छ और अन्दर से काले घोषित करने वाली जीभ वाचालता छोड़ ,अपनी औकात में रह | हम तुझे चबा सकते हैं |यह मत भूल कि तू हमारी कृपा पर ही राज कर रही है |”दांतों ने किटकिटाकर कहा

जीभ ने नम्रता बनाये रखी किन्तु उत्तर दिया “दूसरों को चबा जाने की ललक रखने वाले बहुत जल्दी टूटते भी हैं |सामने वाले तो और जल्दी गिर जाते हैं |तुम लोग अवसरवादी हो मनुष्य का साथ तभी तक देते हो जब तक वह जवान रहता है |वृद्धवस्था में उसे असहाय छोड़कर चल देते ओ |”

शक्तिशाली दांत भी अपनी हार आखिर क्यों मानने लगे ?”हमारी जड़ें बहुत गहरी हैं |हमारे कड़े और नुकीलेपन के कारण बड़े बड़े तक हमसे थर्राते हैं |”

जिव्हा ने विवेकपूर्ण उत्तर दिया “तुम्हारे नुकीले या कड़ेपन का कार्यक्षेत्र मुंह के भीतर तक सीमित है |मुझमे पूरी दुनिया को प्रभावित करने और झुकाने की क्षमता है |”

दांतों ने पुनः धमकी दी “हम सब मिलकर तुझे घेरे खड़े हैं | कब तक हमसे बचेगी?”

जीभ ने दांतों के घमंड को चूर करते चेतावनी दी “डॉक्टर को बुलाऊँ ?दन्त चिकित्सक एक एक को बाहर कर देगा |मुझे तो छुएगा भी नहीं और तुम सब बाहर दिखाई दोगे |”

संगठित और घमंडी दांत अब निरुत्तर थे | उन्हें कविता पंक्ति याद आ गई “किसी को पसंद नहीं सख्ती बयान में ,तभी तो दी नहीं हड्डी ज़बान में |”

डॉ. हरि जोशी

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