हम आजाद हैं
मेरे भीतर मर गया ,पढा-लिखा इंसान ।
उस दिन से नेता सभी ,बाँट रहे हैं ज्ञान ।।
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सहमा सोया आदमी,बहुत सहा अपमान ।
लेकिन फिर भी कह रहा,भारत यही महान ।।
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पास कभी तो था नहीं,कौड़ी और छिदाम ।
आज उसी की कोठियां,भरे-भरे गोदाम ।।
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ऐनक टूटा आँख का,कब सुन पाया कान ।
तेरा बन्दर बाप जी ,है चतुर बदजुबान ।।
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आप सुलगा सोचते ,धूप- अगर-लोभान
मंदिर बज ले घण्टियाँ ,मस्जिद होय अजान
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सुशील यादव
14 अगस्त 17