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सुशील यादव

एक अजायबघर

योजना है नगर विन्यास की

गांधी पुतले के चारों तरफ

बाउंड्री डाल

अजायब घर के शिलान्यास की

वैसे

अजीब है

पूरा ये शहर

फिर क्या जरूरत

बने यहां अजायब घर ....?

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कुछ ज़िंदा नमूने,

तरह-तरह

विषैले साँप,

जो डसते नहीं

बस काटते हैं

ख़ास मौको पर

फुफकारते ,

डांटते हैं

बतौर उदाहरण ये

अधिकारी कहलाते हैं

ढोल ....नाकामी के

सरकारी अनुदान पर बजाते हैं

#

यहाँ के कुत्ते जनाब

भौकते कम

तलुए ज्यादा चाटते हैं

ये नेता के चमचे कहलाते हैं

परमिट -लाइसेंस के लिए

चप्पलें कहाँ -कहाँ घिसोगे ....?

गेहूं में घुन सरीखा

अपनी जिंदगी को

बेमताब पिसोगे ....?

इनकी शरण में काम बन जाएंगे

आपके बंगले

इस बहाने ,दो-चार तन जाएंगे

#

बन्दर किस्म के कुछ

नौसिखिये भी हैं ,

जो बापू के चश्मे को

गांधी-जयंती पर साफ कर आते हैं

फिर खुद को

गंगा में नहाया -धुला

साफ बताते हैं

इन्ही की हरकतों से

देश में तबाही का मंजर है

बात अहिंसा की ये करते मगर

नीयत में

धारदार

ख़ंजर है ....?

#

ये बुरा

न देखने

सुनने

कहने ...

का ढोंग भरते हैं

मगर मतलब के लिए

इनके

नए मायने निकाल लाते हैं

ताजिंदगी उसी कमाई को खाते हैं

#

इनका

मौक़ा ऐ वारदात पर

मौजूद रहना ...

फिर तफसील से

अदालत में

शपथ के साथ ..

आँखों देखे वारदात का कहना

गजब ढाता है

ये अपने को जब

हरिश्चंद्र का बाप बताता है ...

इसे

सुने को मरोड़ना

कहे से मुकरना

भी आता है

आजकल पता चला है

खादी पहने से घबराता है

#

ये आदतन किस्म के अपराधी

नब्बे प्रतिशत ....

नेता बन जाते हैं,यही...

मजे-मजे देश चलाते हैं

##

गांधी पुतले की योजना में

कुछ नया करना होगा

अजायब घर में

दिखावे के नाम पर रोने वाला

मगरमच्छ केवल ...

पिजरे में भरना होगा

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सुशील यादव

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