मां दुर्गा के चरणों में मैं, अपना शीश झुकाता हूँ ।
तेरे दर पे आकर माता, श्रद्धा के फूल चढाता हूँ ।
कोई न हो जग में दुखी मां , तेरी कृपा बनी रहे ।
बस इसी आशा से मैं, लोगों को भजन सुनता हूँ ।
जिस पर तेरी कृपा पड़े मां , भाग्य बदल जाता है ।
पल भर में ही वह मानव , रंक से राजा बन जाता है ।
जहां जहां तक नजरें जाती , सब पर तेरी माया है ।
प्रकृति का कण कण भी, तुझ पर ही बलि जाता है ।
तेरे दर पे आकर माता, मन का बगिया खिलता है ।
भूल जाता हूँ दुनियादारी, सुकून मन को मिलता है ।
तेरी याद में हर दिन माता, मैं ये भजन लिखता हूँ ।
तेरी कृपा के बिना तो माँ, पत्ता भी न हिलता है ।
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया
(छत्तीसगढ़ )
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