हमसे लगभग रोज़ाना पूछा जाता है कि ई-कल्पना-मैगज़ीन में प्रकाशित होने का क्राईटीरिया क्या है?
हम भाषा शैली (लिटरैरी स्टाईल) और कथानक पर विशेष ध्यान देते हैं. ये दोनों बातें, कथानक में ट्विस्ट और भाषा, लेखक का बहुत समय लेती है. लेकिन अंत में वो मेहनत और समय कहानी पढ़ने में दिखलाई दे जाती है.
कथानक अकसर वे ध्यान खींचते हैं जो once in a lifetime वाले हों – जैसा कि शरतचंद की देवदास का कथानक,
या फिर ऐसे कथानक जिसकी पढ़ने वाले को उम्मीद ही न हो और पढ़ने के दौरान वो हैरान हो जाए. जैसा कि अप्रैल में प्रकाशित रमाकांत जी की कहानी "वह क्यों रोई" के अंत में हुआ. मिर्ज़ा हफ़ीज़ बेग कथानक में ट्विस्ट लाने में माहिर हैं. वो आप इस अंक की कहानी में भी देख पाएँगे.
ई-कल्पना-मैगज़ीन में प्रकाशित ज़्यादातर कहानियों में लेखकों ने भाषा पर भी बहुत ध्यान दिया है. कहानी के अनुसार भाषा का लहज़ा तय करना, भाषा का स्तर ऊँचा रखना, इन बातों में काफ़ी चिंतन और अनुशासन की ज़रूरत होती है.