दीपावली करीब आ रही थी और बाज़ार में खरीददारों की भीड़ भी बढ़ती जा रही थी पर इस भीड़ का अधिकांश भाग जा रहा था शॉपिंग मॉल की तरफ ; आर्गनाइज्ड रिटेल स्टोर की तरफ ।
दीपावली में खुशियाँ बाँटिये, प्यार बाँटिये जैसे संदेशों वाले मैसेज व्हाट्सएप्प पर प्रसारित करने वाले लोगों ने भी जब कदम रखा तो किसी न किसी बड़े ब्रांड के स्टोर में ही दिखे ।
उनकी नज़र ऐन वक़्त पर कहाँ चली जाती है ?
या सिर्फ सोशल मीडिया पर ही सारी मानवता छलक कर फिर शान्त हो जाती है ?
हर शहर के भीतर हैं झुग्गी झोपड़ी !
हर चौराहे पर हैं कुछ ग़रीब !
जो भीख नहीं माँगते !
और आपको महान दानी होने का गौरव नहीं देना चाहते !
चाहते हैं तो बस इतना कि,
खरीद ले कोई उनसे भी
ये गुब्बारे !
या कोई ऐसी ही चीज़ !
जो बमुश्किल १० रुपये से ५० रुपये की लागत लेगी !
खुद्दारी जिनमे है उनमें रहने दो !
और कोशिश हो के जिनमे नहीं है उनमें आ जाये !
पर ये होता कहाँ है ?
हम १ का छोटा सिक्का देकर आगे बढ़ना चाहते हैं !
१ का सिक्का न होने पर छुट्टे न होने की बात कहते हैं !
क्या हम ही नहीं बढ़ाते ?
इन शॉपिंग मॉल, रेस्टोरेंट, पार्क, चौराहों, बस स्टेशनों और रेलवे स्टेशनों पर भिखारियों की संख्या !
ये १ का सिक्का भी प्रोत्साहन राशि है !
क्योंकि खुद्दारी से सामान बेचने वाले को १० रुपये पकड़ाते वक़्त हम महान नहीं बनते !
खरीददार बन जाते हैं !
कल को फिर कोई खुद्दार इन्सान फेंक देगा अपने हाथों से इन सामानों को
और फैला देगा अपना खाली हाथ उस १ रूपये के लिए !
बातें पढ़ने, सुनने, लिखने, शेयर करने से कुछ नहीं होता ज़नाब !
समाज का आइना बदलना है तो मदद करने वाले हाथों को महान बनने के मोहजाल से बाहर आना होगा !
कुछ करना होगा और कुछ करके दिखाना भी होगा !
©नितिन_चौरसिया