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सुशील यादव

अफवाहों के पैर में ....

सावधान रहिये सदा ,जब हों साधन हीन।

जाने कल फिर हो न हो,पैरों तले जमीन।।

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अफवाहों के पैर में ,चुभी हुई जो कील ।

व्याकुल वही निकालने ,बैठ गया 'सुशील' ।।

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अफवाहें मत यूँ उड़े ,करते लहू-लुहान ।

मंदिर सूना भजन बिन,मस्जिद बिना अजान ।।

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मेरे घर में छा गया, मेरा ही आतंक ।

राजा से कब हो गया ,धीरे-धीरे रंक ।।

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हाथ लगी जब चाबियां ,निकले नीयत-खोर ।

बन के भेदी जा घुसे ,लंका चारों ओर ।।

 

सुशील यादव , दुर्ग

23.8.17

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