सावधान रहिये सदा ,जब हों साधन हीन।
जाने कल फिर हो न हो,पैरों तले जमीन।।
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अफवाहों के पैर में ,चुभी हुई जो कील ।
व्याकुल वही निकालने ,बैठ गया 'सुशील' ।।
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अफवाहें मत यूँ उड़े ,करते लहू-लुहान ।
मंदिर सूना भजन बिन,मस्जिद बिना अजान ।।
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मेरे घर में छा गया, मेरा ही आतंक ।
राजा से कब हो गया ,धीरे-धीरे रंक ।।
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हाथ लगी जब चाबियां ,निकले नीयत-खोर ।
बन के भेदी जा घुसे ,लंका चारों ओर ।।
सुशील यादव , दुर्ग
23.8.17