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मिर्ज़ा हफ़ीज़ बेग

तफ़्तीश

रात का आखरी पहर बीत चला था । पौ फटने को है; लेकिन नज़र कुछ आता नहीं । धुंध इतनी ज्यादा है । और ठंड ? पूछो मत । मुख्य सड़क के किनारे के पेड़ और पत्थर भी मुश्किल से परछाई जैसे नज़र आते है । बस एक पुलिस की गाड़ी है जो सड़क पर धीरे धीरे रेंग रही है ।

"क्या मजबूरी है ।" वह बड़बड़ाता है, "कहाँ आ फसा हूँ । पता नहीं और कितने दिन झेलना पड़ेगा ।"

"कुछ समय लगता है सर," ड्राइवर ने सड़क पर नज़रें गड़ाए हुए कहा, "धीरे धीरे आदत पड़ जाती है ।" मानो उसने, अपने अधिकारी, रविकांत के मन की बात सुन ली, "अब इस तिलोचन को ही देख लो । दो घूँट चढाई और मस्त .... ।"

"अरे ! इसे कोई कुछ बोलता नहीं," रविकांत बोला "ड्यूटी में भी.... ।" उसने पीछे एक नज़र हवलदार तिलोचन पर डाली जो पिछली सीट पर बैठे बैठे खर्राटे ले रहा है ।

"कौन बोलेगा सर जी," ड्राइवर बोला, "देखिये आप चार दिन में ही बेज़ार हो गए । यह बेचारा कितने बरसों से यहीं टिका है, परिवार से दूर । अपने आप को भूले बिना यह कैसे संभव है । इसी लिए कोई कुछ नही कहता । जानने को जानते सब हैं ।"

रविकांत चुप रह गया ।

वह तो बड़ा झुंझलाया हुआ था । इस जगह उसकी नई नई पोस्टिंग हुई थी । जुमा जुमा आठ रोज़ हुए होंगे और अभी से मन उकताहट से भर गया था । वह शहर का पला बढ़ा लड़का उसकी सात पीढ़ियों में भी कोई ऐसी मनहूस जगह रहा नही होगा । पर अब देखो.... । क्या करे ? नौकरी है, जो न करवाले कम है । कब छुटकारा मिलेगा या मैं भी तिलोचन जैसा हो जाऊँगा । अब उसे यकायक हवलदार तिलोचन पर बड़ा तरस आ गया ।

नौकरी....

अंग्रेजों ने भी नौकरी को अच्छा नाम दिया है- ड्यूटी । ड्यूटी यानी कर्तव्य । फ़र्ज़ । अब इससे मुंह तो नहीं मोड़ सकते न । नौकरी से भले छुटकारा पाया जा सकता है । वैसे भी उसे तो यही नहीं पता था कि आज की दुनियाँ में ऐसी जगहें भी मौजूद हैं । जंगल और पहाड़ों से घिरा यह कस्बा अपने अस्तित्व का बोध कराने में भी नाकाम था । यदि यहां एक अदद पुलिस थाना न होता तो रविकांत कभी यहां ऐसी कोई जगह है, यह भी नहीं जान पाता । पता नहीं, सरकार को भी क्या सूझती है ऐसी जगहों पर थाना वाना खोलने की । छोटी जगह है, संक्षिप्त सी । चार कदम में पूरे इलाके का चक्कर लगा लो । यहाँ से शुरू यहाँ पे ख़तम ।करने को कोई काम नहीं । कहीं कोई अपराध दर्ज नहीं । हो भी तो यहाँ पुलिस की चलती कहाँ है । इन दूर दराज की आबादियों में कोई एक तो ऐसा होता है ही कि जो बाकी सब पर भारी हो । वो कोई भी हो सकता है । कोई संत महात्मा, कोई पुजारी, कोई सबसे धनवान, कोई दबंग, कोई नेता कोई अपराधी कोई भी । और उसी की तूती बोलती है, हर तरफ । पुलिस की क्या मजाल जो उनके खिलाफ चली जाए । ऐसी जगह पर पुलिस की हालत तो पिंजड़े में फंसे चूहे जैसी ही होती है । पता नही कितने दिन रहना पड़ेगा इस पिंजड़े में ? फिर भी इस नौकरी की एक बात अच्छी है कि जगह अच्छी हो या बुरी ज़्यादा दिन टिक नहीं सकते । वैसे कभी कभी उल्टा भी हो सकता है....

अब तिलोचन को ही देख लो....

इस बात से उसका दिल एक बार फिर खट्टा हो गया ।

धुंध अब तक कम होने का नाम नही ले रही । गाड़ी के शीशे भी धुंधले हो गए थे लेकिन पानी की बून्दे उस पर बहकर अपनी कलाकारी का नमूना छोड़ रही थी । गाड़ी की विंड स्क्रीन पर वाईपर लगातार चल रहा है , वार्ना तो एक कदम बढ़ाना भी मुश्किल हो जाये । इस हालत में क्या तो गश्त करलें, या रास्ता ही देख लें । दोनो काम तो एक साथ हो नही सकता । सब इंस्पेक्टर रविकांत का बस चलता तो इस मौसम में रात की गश्त के बजाए रूम पर रज़ाई ओढ़ कर पड़ा रहता । लेकिन नीचे बस्ती में कोई स्वामी जी के प्रवचन की तैयारियां ज़ोर शोर से चल रही है । और स्वामी जी चूंकि सत्ताधारी पार्टी से समीपता रखते हैं अतः प्रशासन को उनकी सुरक्षा की बहुत चिंता लगी है । उच्चाधिकारी लगातार रिपोर्ट ले रहे हैं । समझ नहीं आता इन ढोंगी स्वामियों को जान का इतना डर क्यों होता है । इनके खून से तो कोई पापी भी अपना हाथ गंदा न करे । जिसे इतना मोह है अपने प्राणों का वह कैसा सन्त ? सब अभिव्यक्ति है अहंकार की; कि, देखो कैसे पुलिस और प्रशासन हमारे आगे पीछे फिरते है । लेकिन हमारा महकमा यह बात समझे तो । वहां समझने वाला तो कोई नहीं है ।

"अरे, यहाँ हमेशा ऐसी ही धुंध छाई रहती है क्या...." रविकांत के बाकी शब्द हलक में ही राह गए ।

चीं ईईई

अचानक एक चीख के साथ गाड़ी रुक गई । सब इंस्पेक्टर रविकांत ही क्या, पीछे की सीट पर खर्राटे भरता हुआ हवलदार तिलोचन भी चौंक कर उठ बैठा । सामने कुछ ही कदम की दूरी पर विपरीत दिशा से आकर रुकी, एक कार खड़ी है । कार की हेड लाईट्स जल रही है; और उसकी मद्धम सी रौशनी में, दो हट्टे कट्टे लोग एक इंसान के शरीर को उठाकर सड़क के किनारे की ओर ले जाते दिख रहे है । ड्राइवर अगर ठीक टाईम पर ब्रेक नहीं लगाता तो पुलिस की गाड़ी के साथ टक्कर हो जाती ।

सामने पुलिस की गाड़ी को देख वे दोनों चौंके और बॉडी वहीं छोड़ कर भागने लगे । रविकांत, तिलोचन और ड्राइवर तीनो अपने वाहन से कूदकर उनके पीछे भागे । कुछ ही देर में वे हट्टे काटते दोनो साये तेज दौड़ते हुए गायब हो गए ।

"कोई बात नहीं ।" इंस्पेक्टर रविकांत ने हांफते हुए कहा, "भाग कर कहाँ जाएंगे ? पहले लाश को तो बरामद कर लें ।"

लाश का खयाल आते ही वे वापस आये । लेकिन वहां लाश तो थी ही नहीं । अरे वे लोग भागे तो भागे लाश कहाँ जा सकती है ? बड़ी हैरानी की बात है; लाश अपने आप उठकर भागेगी तो नहीं । ड्राइवर भी हैरान और तो और तीनों में सबसे अनुभवी, हवलदार तिलोचन भी बगलें झांकने लगा । अब सुबह सवेरे सीनियर्स को परेशान करने के सिवाय चारा क्या था ।

"इसका मतलब वहाँ दो ही नही, वहां और भी लोग थे ईडियट !...." इसके बाद लंबी चौड़ी हिदायतें और गालियां सुनकर होश ठिकाने आगये । सुबह सुबह सीनियर अफसर की नींद खराब करने के एवज में डांट कहकर रविकांत को अक्ल आई । जब हम उनके पीछे भागे तो उनके बाकी साथी लाश उठाकर ले गए । खैर ! कोई बात नहीं गाड़ी तो छोड़ गए । बचाकर जाएंगे कहाँ ? गाड़ी को देखा, लॉक थी ।

"कोई बात नहीं ।" रविकांत ने कहा, "गाड़ी से सब पता चल जाएगा ।"

हवलदार तिलोचन को वहीं गाड़ी के पास रोक कर रविकांत और ड्राइवर थाने की तरफ चल पड़े ।

तिलोचन ने ठंड से झुरझुरी ली और गाड़ी के डोर को खोलने की नाकाम कोशिशों के बाद गाड़ी के बोनट पर बैठने की कोशिश की; लेकिन बोनट इतना ठंडा था कि वह तुरंत नीचे कूद गया । फिर पास के एक पत्थर पर बैठा । पत्थर भी ठंडा था । उसे नींद भी सता रही थी । अंत मे उसने जेब से एक चपटी बोतल निकली । दो-चार घूँट हलक से उतारे । अब उसे गर्मी महसूस होने लगी । वह बेधड़क गाड़ी के बोनट पर पसर गया । नींद ने तुरंत उसके होश ओ हवास पर कब्ज़ा कर लिया ।

थाने पहुंचकर ड्राइवर को उस गाड़ी को थाने लाने के लिए टोइंग वैन लाने के लिए कहकर रविकांत अपने सीनियर्स को रिपोर्ट देने लग गए । सीनियर्स ने कहा वहां ठीक से फिर देखो, कुछ न कुछ क्लू ज़रूर मिलेगा ।अपराध हुआ है तो सबूत तो होगा ही । यह भी तय हुआ कि अपराध हुआ है; कोई दुर्घटना नहीं । अन्यथा लाश गायब करने की नौबत नही आती ।

इस रिपोर्ट ने पुलिस महकमे में हड़कंप मचा दी । प्रशासन को किसी बड़े षड्यंत्र की बू आने लगी । बार बार एक सवाल सामने आता; स्वामी जी का दौरा सामने है; कहीं स्वामी जी की जान को खतरा तो नहीं । स्वामी जी का प्रवचन स्थगित करवाने की कोशिशें भी शुरू हो गईं थी; लेकिन स्वामी जी और आयोजकगण भी सहमत नहीं थे । इसी सरगर्मी में सारी बातें मीडिया में पहुंच गई और कहानियां बनाने लगीं ।

इधर जैसे ही रविकांत ड्राइवर के साथ टोइंग वैन लेकर गाड़ी पुल करने निकलने लगा, किसी ट्रक ड्राइवर ने खबर दी कि पांचवें ढलान के पास एक पुलिस की बॉडी दिखाई दी है । पांचवी ढलान, यह तो क्राइम सीन है । तिलोचन का खयाल कौंध गया । वह तुरंत ड्राइवर के साथ अपराध स्थल की ओर भागा ।

वहां पहुंचकर देखा, रात वाली गाड़ी गायब है और तिलोचन सड़क के किनारे लुढ़का पड़ा है । साँसे चल रही हैं । हिलाने डुलाने पर वह आंखें मलता उठ बैठा ।

"गाड़ी कहाँ है ?" रविकांत चिल्लाया । तिलोचन को जैसे कुछ समझ नही; आया वह टुकुर टुकुर देखने लगा ।

"गाड़ी कहाँ है ?" वह फिर चिल्लाया ।

"पता नहीं साब, नींद लग गई थी ।"

रविकांत ने माथा पीट लिया । अब क्या करें ? पूरा मामला हाईलाइट हो चुका है । रविकांत ने तुरंत मोबाइल से रिपोर्ट की, "सर, क्रिमिनल्स ने हवलदार तिलोचन को बेहोश कर दिया और क्राइम में यूज़ हुई गाड़ी लेकर फरार हो गए ।...यास सर.... नहीं सर आप सब तो जानते हैं... ही इज़ सेंसिबल पर्सन ... यही गनीमत है सर, ही इज़ अलाइव ... यस सर ..."

पता नहीं, अपराधियों ने कितनी सफाई से काम को अंजाम दिया था । घटनास्थल पर अपराध के कोई सुराग नहीं मिले । सिर्फ एक जूता मिला जो दाहिने पैर का था । अब इसी को अहम सुराग मानकर केस आगे बढ़ाना था । लाश तो मिलनी नहीं थी , नहीं मिली ।

मुख्यालय से वरिष्ठ अधिकारी रवाना हो चुके थे । पत्रकार पहले ही पहुंच चुके थे । एक पैर के जूते की कहानी भी मीडिया में आ चुकी थी । टी वी चैनल चीख चीख कर पूछ रहे थे, "यह जूता आखिर किसका है ? खूनी का ? या सबूत मिटाने वालों का ? या जिसका कत्ल हुआ है , उसका ? पुलिस कुछ भी बताने में असमर्थ ।"

रविकांत की नींद उड़ चुकी थी और तिलोचन का नशा भी हिरन हो चुका था ।डयूटी खत्म होने के बाद भी वे जूता लिए बस्ती में घूम रहे थे । कुछ सुराग हाथ नहीं आ रहा था । मीडिया सवाल दाग दाग कर अलग परेशान किये था । वे दोनों एक ढाबे में जूता दिखाकर पूछ ताछ कर रहे थे तभी भीड़ में से बस्ती का शराबी चिल्लाने लगा, "साहब साहब..."

भीड़ में से निकलकर शराबी हिलाता डुलता बाहर आकर रविकांत के पैरों पर गिर गया ।

"साब, मेरा जूता दिला दो साब ! आप को तो मिला है मेरा जूता ..., टी वी तो बता रहा है .... मेरा जूता आपके पास है ।"

"तेरा जूता है ?" जूता दिखाकर रविकांत ने पूछा ।

"हाँ साब, एई है ।" वह बोला ।

"थाने में रिपोर्ट लिखाई ?"

"नई साब ।"

"पहले थाने चलकर रिपोर्ट लिखाओ ।"

इस तरह वह शराबी उनके साथ थाने पहुंच गया ।

"चल अब पूरी बात बता ।" रविकांत बोला ।

शराबी चालू हुआ, "साब, क्या बोलेगा । सबेरे का अपना तो टाइम फिक्स है न । जो खाया पिया, बाहर तो निकलेगा न साब । तो आज भी ये मेन रोड के उसपार जंगल मे, जहां हमेशा जाता है, गया था पानी का बोतल लेकर । वापसी के टाइम मेरे पीछे पीछे एक कार चलने लगा । मैं कुछ नई बोला साब, बोलो । अब सड़क पर एक कार मेरे पीछे पीछे चलेंगा साब तो गुस्सा तो आएगा न । मैं फिर भी कुछ नही बोला साब । फिर वो मेरेको हॉर्न मारने लगा साब, बोलो । मैं कोई गाड़ी है क्या ? मैं तो साब आम आदमी । गरीब । आम आदमी तो हमारा देश मे राजा होता है न साब बोलो । मेरे को हॉर्न मारा तो गुस्सा तो आएगा न साब । मैं उसको गाली दिया । कुछ गलत किया क्या ? बताओ साब गलत किया क्या ? गरीब आदमी को सड़क पे चलने बी नई देगा ? सड़क ये पैसा वाले लोग के बाप का है क्या ? मैं गाली दिया; हव, दिया साब गलत किया तो मेरे को जेल में डाल दो । फांसी चढ़ा दो । पर गाली दिया साब...."

"अबे, आगे बोल ।" शराबी की गाड़ी एक जगह अटकती देख रविकांत बेचैनी से चीखा ।

"बोल रहा है न साब । ... गाली दिया साब...."

"अबे, आगे बोल आगे ..." रविकांत उत्तेजना और अधीरता से चीख उठा । बाहर न्यूज़ अपडेट के लिए बैठे मीडिया कर्मियों के कान खड़े हो गए । वह शराबी भी घबरा गया ।

"बोलता है न साब । मैं गाली दिया तो, वो कार में से दो ठोक तगड़ा तगड़ा लड़का लोग उत्तर के आया । मैं डरा नई । कायको डरेगा साब ? कोई चोरी किया ? फिर क्यों डरेगा ? मैं नई डरा ...."

अब रविकांत ने धीरे से डंडा दिखाया; जिसे देख शराबी की कहानी की गाड़ी आगे बढ़ी ।

"... फिर वो लोग मेरेको बोलता साब, मैं बीच मे क्यों चलता ? मैं साईड नई देता । बोलो साब ये सड़क उनके बाप की है ? सड़क तो सरकार की है । और सरकार तो गरीब आदमी के लिए है । मैं क्यों देगा साइड । मैं और मेरे जैसा गरीब लोग का घर नही होता तो सड़क पर सोता है साब । ए सड़क तो हमारा घर होता न साब । ये भी पैसा वाला लोग छीन लेगा क्या । सब चीज़ तो पैसा वाला के पास होता है साब ये सड़क भी छीन लेगा क्या । मैं नई देगा साईड मैं बोला साब । मैं गाली भी दिया साब...."

वह रोने लगा । सिसक सिसक कर रोने लगा ।

"फिर क्या हुआ ?" रविकांत ने पूछा ।

"फिर साब, मेरे को मारा साब । वो जो लंबा वाला लड़का था न ? मेरे को एक फाईट मारा साब । इतना ज़ोर से मारा साब के मैं गिर गया । मैं समझ गया साब । मैं समझ गया । मैं शराबी ज़रूर हूं, लेकिन बेवकूफ नई साब । मैं समझ गया इससे लड़ेगा तो बचेगा नई । इसलिए मैं बेहोश होने का नाटक करके ज़मीन पर पड़ा रहा साब ।"

"फिर क्या हुआ ?"

"फिर ओ लोग डर गया साब । उन लोग बात किया- यार ये तो एक मे ही लुढ़क गया । फिर दूसरा बोला- देख तो साला मार तो नई गया । फिर ओ लोग बोला चल उठाकर किनारे कर देते हैं फिर अपन खिसकते हैं । वो लोग मेरेको उठा रहा था तबिच आप लोग आ गया साब । आप लोग उनके पीछे भागा तबीच अपन बी मौका देखकर खिसक लिया साब ।"

"तो, तू वहां से भागा क्यों ?" रविकांत चिल्लाया ।

"अपुन को पुलिस का लफड़ा नई मांगता न साब ..." उसने बड़े आत्मविश्वास से जवाब दिया ।

अब पुलिस का हाल तो जाने दो.....

मीडिया में खबर चल गई थी । टी वी चीख चीख कर एलान कर रहा था- पुलिस की बड़ी कामयाबी । चंद घंटों में ही पुलिस ने उस जूते वाले व्यक्ति को ढूंढ निकाला । पुलिस पूछ ताछ कर रही है । अब जल्द ही लाश भी बरामद हो जाने का अनुमान है । जल्द ही इस षड्यंत्र का पर्दा फाश हो जाएगा । इसके पीछे छिपे चेहरों का नकाब उतर जाएगा । इस बीच स्वामी जी ने बयान दिया है, वे ऐसे खतरों से नहीं डरते और प्रवचन का कार्यक्रम स्थगित नहीं करेंगे...

इधर थाने में स्तब्धता छाई है ।

सबको स्तब्ध देखकर शराबी ने पूछा, "कुछ गलत किया क्या साब ?"

 

मिर्ज़ा हफ़ीज़ बेग

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