आज़ादी के बाद 3 पीढ़ियाँ बड़ी हो गईं और हम अपने वे सपने साकार भी नहीं कर पाए जो हमने खुद के लिये, अपने बच्चों के लिये और उनके बच्चों के लिये देख रखे थे. हमें पूरा यकीन था कि हम ऐसा समाज ज़रूर बना पाएंगे जहाँ एक लड़की अपनी मर्ज़ी से जी सके.
इस महिला दिवस में हम और सवाल नहीं पूछेंगे. 4 प्रबल लेखिकाओं के कहानी संकलन प्रस्तुत करेंगे. 8 मार्च 2018 को ई-कल्पना किताब प्रकाशन प्रस्तुत करेगा
- देवी नागरानी का "जंग जारी है"
- सरला रवीन्द्र का "दिवास्वप्न"
- तबस्सुम फातिमा का "जुर्म"
-जया जादवानी का "वहां मैं हूं"