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सुशील यादव

किसान ...


धधक रही है किसकी छाती ,आक्रोश में कौन उबला है

कौन पसीना गिरवी रखता ,किसका खूँ दिनरात जला है

वो किसान जो खेत- खलिहान ,लेकर आता है हरियाली

तब मनती है गाँव-शहर में ,होली ईद और दीवाली

उसमे ईश्वर भगवान वही ,अन्न सब को उपलब्ध कराता

एक निवाले की खातिर तो ,बंधा रहता रिश्ता -नाता

एक निवाला खा आदम , तूफानो सीखा लड़ पाना

क्षुधा शांत मानव ही जीता ,शांति गीत को अपनाना

उस किसान को रुष्ठ करो मत ,भर दो उसकी आना-पाई

रूखी- सूखी खाकर सहता ,जग में होती हुई हँसाई

प्रण ये करो कि किसान कोई , अब लटके मिले न पेड़ों पर

कोई लाश बिछे ना देखें , बंजर खेतों की मेड़ों पर

सुशील यादव

६ जुलाई १८

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