धधक रही है किसकी छाती ,आक्रोश में कौन उबला है
कौन पसीना गिरवी रखता ,किसका खूँ दिनरात जला है
वो किसान जो खेत- खलिहान ,लेकर आता है हरियाली
तब मनती है गाँव-शहर में ,होली ईद और दीवाली
उसमे ईश्वर भगवान वही ,अन्न सब को उपलब्ध कराता
एक निवाले की खातिर तो ,बंधा रहता रिश्ता -नाता
एक निवाला खा आदम , तूफानो सीखा लड़ पाना
क्षुधा शांत मानव ही जीता ,शांति गीत को अपनाना
उस किसान को रुष्ठ करो मत ,भर दो उसकी आना-पाई
रूखी- सूखी खाकर सहता ,जग में होती हुई हँसाई
प्रण ये करो कि किसान कोई , अब लटके मिले न पेड़ों पर
कोई लाश बिछे ना देखें , बंजर खेतों की मेड़ों पर
सुशील यादव
६ जुलाई १८