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डॉ. अनिल भदौरिया

आम के तोते, तोते के आम ...



शहर के मध्य में स्थित एक मध्यमवर्गी कॉलोनी जिसमें अधिकतर नौकरपेशा रहवासी. कुल जमा १८५ मकान, छोटे-बड़े मिलकर, कुल जमा ३ पार्क, छोटे प्लाट, संकरी सड़कें किन्तु साफ़ सुथरा रहवास. कुल मिलाकर आधुनिकता की दौड़ में अग्रणी कॉलोनी. फिर भी लोग अपनी जड़ों को संभाले सहेजे हुए कहीं-कहीं गाय और बंधे कुत्ते भी घरों में दिख जाते हैं. ऐसे ही एक घर में चाची जी ने अपने बैकयार्ड के किचेन गार्डन में एक आम और २ पपीते के पेड़ लगा रखे हैं. आम और पपीते के फल आते भी हैं, सब्जी पपीते की और कच्चे आम का अचार भी हर साल डलता है. जब कच्चे आम तोड़े जाते हैं तो सद्भावना वश पास–पड़ोस में दिए भी जाते. हालाँकि चाची जी सदा खुश नहीं होती क्यूंकि देने की आदत सबमें कहाँ होती है, तिस पर चाची जी यदा-कदा कह देती, ‘भैया, हम तो- ला -पढ़े है - दा -नहीं,’ यानी, लेना जानते हैं, देना नहीं.

आज सुबह-सुबह से चाची जी का उद्भाश प्रारंभ था. ‘इस साल एस आम में बौर तो खूब आये लेकिन कच्ची केरी कम लगी है. न जाने क्या हो गया है इस पेड़ को. अरे मोनू, तूने इस बार आम को पानी नहीं दिया अच्छे से, बौर के समय. और पेड़ पे कील लगी थी वो किसने निकाली. पिछले साल ही तो लगायी थी कील, यहाँ तने पर तब २५० से ज्यादा आम आये थे. नाश मिटे उसका, जिसने ये कील ही निकाल दी. अब देखो ऐसा लगता ही नहीं की ४५-५० केरी भी आ पाएंगी.’

समय बीतते यह संवाद रोज का क्रम हो गया. परिवार में अन्य कोई न बोलता न जवाब देता. चाचीजी और आम के पेड़ के मध्य एक अघोषित याद जैसे छिड़ गया हो. पेड़ अपने कर्तव्य निर्वहन में लगा रहा और मई माह आते-आते मध्यम आकार के आम जम आये. अब चाची खुश थीं, जो है अच्छा है परन्तु एक दुःख फिर भी था. दो मंजिला जितनी ऊंचाई के इस पेड़ पर जैसे साजिशन आम की फसल अपनी सबसे ऊपरी शाखाओं पर आयीं थी. हाथ तो क्या, माली के लग्घा भी उन कमजोर और ऊँची टहनियों तक पहुँच नहीं रहा है. तिस पर, वह माली जो आम मिलने की आस में हर साल आ जाता था चाची के पैर छूने वह गाँव चला गया. चाची का यह सुबह दोपहर शाम रोज का संताप हो गया. मोनू, माताजी, घर के अन्य पुरुषों से सहयोग अपेक्षित नहीं था. जैसे गर्मी में चना बिन पानी के सूखता है वैसे चाची जी सूखती जाती और आम पकते जाते.

एक सुबह जैसे बम फटा किचेन-गार्डन में. कई तोते आम के शीर्ष पर बैठे आम का भोजन करते रहे और मीठा खट्टा माल खाकर, गुठली नीचे फेंकते रहे. कुल ५ पूरी तरह से खायी गयी गुठली तोतों के झुण्ड ने समाप्त कर नीचे पटक दीं. चाची को तो जैसे सांप सूँघ गया. तुरंत मिट्टी का धेला उठाया, उछाल दिया ऊपर, उड़ गए तोते. चाची गिनने लगीं, कई सजे, कई कुतरे, कुछ खोंते हुए आम अभी भी लगे थे पेड़ पर. चाची का दुःख और निज असमर्थता उनके चेहरे और तीखी बोली से निरंतर निर्बाध प्रदर्शित हो रही थी. तिस पर तोते फिर आम पर आ बैठे.

चाचा जी भी बोल ही दिए चाची जी का राग भैरवी. ‘सुन, अरे तोते का भी तो हक है इन आमों पर, इस बार ये आम उनके ही हुए ये समझ लो.’

इतना बोलना हुआ कि चाची जी का बिफरना शुरू हो गया. ‘कितने सालों से इस आम को पाल पोस कर बड़ा किया है, जब खाने का मौसम आया तो इस बार इतने कम आम आये और इतने ऊपर आये की न सहेजा जाये न तोड़ा जा पाए. तुम क्या जानो, कितने प्रेम से पेड़ को पाल-पोस कर बड़ा किया जाता है.’

चाचा जी के मन में आया कि कह दें, कि बाजार से ला देता हूँ आम, केरी, टपका, बादाम आम, केशर आम, दशहरी आम, लंगड़ा आम सब जीभर आम का आनंद ले लो, परन्तु हिम्मत न कर पाए, चुप्पी साध, द्वार की और बढ़ गए.

दुखी मन की कहानी, घर में ही नहीं रहती है वह बिना पंखिन के उड़ाती जाती है, मीलों-मील घर-परिवार, नातेदार-रिश्तेदार, द्वार-द्वार चाची का दर्द बयानहो गया. बाकि अन्य का मनोरंजन का साधन भी हो गया. ये जानते हुए भी कि बचे हुए आम अभी तोड़े जा सकते हैं चाची जी को किसिस का सहयोग न मिल पाया. उपर से सुबह सुबह तोतों का झुण्ड दावत मनाने उपलब्ध हो जाता. तोते की खासियत होतिया है यह उड़ते उड़ते भी बतियाते चलता है और पेड़ पर तो बैठते ही संसद जमा लेता है. चोंच लगाएगा, खोंट मरेगा, बतियायेगा और पेट भरते ही झुण्ड, फुर्र...

चाची के हाथ आती गुठलियाँ, निपट गुठलियाँ, कभी ५ तो कभी ८ तो कभी १०. चाची जी के सामने ही सारी सल्तनत यूं लुटती और उड़ती जाती कि ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर दोनों उपर और गुठलियाँ नीचे.

चाचा प्रेम से बतियाते, बच्चों से और परोक्ष रूप से कहते भी,

.......प्रकृति की भेंट पर सबका सामान अधिकार है. प्रकृति सामान रूप से सबको पोषित करती है और प्रकृति में पर्याप्त मात्रा में भोजन पैदा है और समाहित है किन्तु किसी एक के भी लालच के लायक प्रकृति में पर्याप्त नहीं है.

चाची को ये बातें न सुहातीं और वे अनसुना कर जाती, चाचा जी भी कुछ सीधे बोल न पाते.चाची यूं तो गरलमना रहतीं, एक दिन बिफर ही गयीं,जब मोनू ने धीरे से कह दिया,

इस साल तो पक्षियों और गिलहरियों ने आम की खूब दावत उड़ाई.आम के पेड़ का और इन पक्षियों का कोई करार हो गया लगे, तभी तो अपने को सिर्फ गुठली ही गुठली हाथ आई. चाची का चेहरा कभी हरा कभी लाल, अति-रंजना हो तो बोलने को कुछ सूझता नहीं था.

तभी द्वार की घंटी बजी....

कूरिएर ....

अरे, सब दौड़ पड़े, दरवाजे की और....

कुरियर कहाँ से....किसने भेजा है... क्या है...किसको भेजा है... मोनू को किसी लड़की ने तो नहीं भेजा है?

पार्सल है, चाचीजी के नाम.

घर के हर कमरे , दालान, आँगन में स्वर – लहरी गूंज गयी. चाची जी मुंह में रोष दबाये, दर तक आ गयीं. मुझे कौन भेजेगा पार्सल?

मोनू बोल उठा, चाची, आपके भैया ने अमरीका से भेजा होगा... माल है माल इसमें ऐसा लगे मुझे तो!

पावती हस्ताक्षर हो गए.

पार्सल भारी है, उफ़ ये तो १५-२० किलो है.

......मोनू उठा तो भीतर ले चल, आंगन में. चाची बोली.

परिवार इकठ्ठा हो गया, पार्सल के चारों और...

हर्ष, विस्मय के साथ कहीं भय भी क्या है इस पैकेट में....

मोनू कैंची ले आया, थैली कटी तो गत्ते का कार्टून सामने था.

अरे, ये तो अमदाबाद, गुजरात से है...

चाची जी आपने कहीं आकांक्षा से तो कुछ नहीं मंगवाया आपने...

अरे ना रे, मुझे क्या पड़ी, जो मेरी भतीजी को मैं बोलूं.

खोलो तो!

खोलो-खोलो.

टेप हटा, रहस्य हटा...

केशर आम!

पके और कच्चे और अधपके....

आज भी खाओ, १० दिन तक खाओ और अचार भी डालो, मुरब्बा भी बनाओ.

खिलखिला दिए सब.

चाचीजी स्तब्ध.

न खुश न दुःख का निशान.

पार्सल के पास जमीन पर बैठ गयीं, शांत मन, विस्मय बोध और प्रेम भाव के चेहरे पर आरोह- अवरोह होते रंग.

हाथों में ले लिए आम...

अरे वाह, आकांक्षा ने बड़े अच्छे आम भेजे. तौलो तो देखें , कितने होंगे....

मोनू काँटा लेने दौड़ पडा...

पुरे २० किलो..

अब गिनो कितने हैं,,

५२ नग ...

अरे वाह, सब बोल पड़े...चाची बोल उठी,

देखो, कार्बाइड से न पकाना, पयाल में कच्चे रखे रहने दो और पुरे पके हुए फ्रीज में, अधपके गेहूं में रख दो ..चाचीजी की आँखें नम हो आयीं,कह उठीं, फोन लगाओ जी, आकांक्षा को.

अरे बेटा, इतने आम कोई भेजता है क्या वह भी केशर,.

....चाची, मेरी पहली सैलरी के हैं, दबा के उडाओ और खाओ. इस शनिवार, छुट्टी पर मैं भी घर आ रही हूँ.

चाचीजी की पोर भर आई. ह्रदय से बोल उठी घर में,

तोते का भोजन, अब कोई न ले पाए...यह इश्वर लीला है.

हो .... का हल्ला हो गया, घर में और तोतों के झुण्ड की दावत भी...

डॉ अनिल भदौरिया

मेडिकल ऑफिसर,

श्रम विभाग,

कर्मचारी राज्य बीमा सेवाएं,

देवास, मध्यप्रदेश में सेवारत।

शिक्षा- एम जी एम मेडिकल कॉलेज, इंदौर 1990

एम बी ए, पॉन्डिचेरी यूनिवर्सिटी

★ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, नेशनल हेड क्वार्टर, दिल्ली के ए. पी. शुक्ल अवार्ड (2018) से सम्मानित।

★ सेक्स एजुकेशन (अंग्रेजी) के शीर्षक से स्कूल व कॉलेज के छात्रों के लिए यौन शिक्षा की पुस्तक प्रकाशित।

प्रकाशक -

PEACOCK BOOKS

ISBN- 9788124801659

★ साप्ताहिक पत्रिका, सेहत, दैनिक नई दुनिया (जागरण समूह का प्रकाशन), में स्वास्थ्य संबंधी आलेख नियमित रूप से प्रकाशित होते हैं. स्वास्थ्य के विषय जैसे कैंसर की पहचान स्वयं करें, हाथों की सफाई रखने से बीमारी से बचेंगे, शुद्ध जल के फायदे, मधुमेह से बचने के उपाय, 80 का नियम, पैदल चलने के फायदे, घुटने कैसे बचाना है, मोटापे का कंट्रोल संभव है....प्रकाशित हो चुके हैं।

★ 25000 फ़ीट की ऊंचाई पर लखनऊ - हैदराबाद इंडिगो उड़ान दिनांक 16 अक्टूबर 2018 को 75 वर्षीया महिला के आकस्मिक हृदय गति रुकने पर तुरंत सी पी आर देकर जीवन रक्षा की थी।

★ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की इंदौर शाखा के सचिव, राज्य शाखा मध्यप्रदेश के सह सचिव रह चुका हूं।

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