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अशोक गौतम

मातादीन ऑन डबल मिशन


वैज्ञानिक परेशान थे। यान दुल्हन की तरह सज धज कर चांद पर जाने को तैयार था, पर उन्हें यान में चांद पर किसे भेजा जाए, ऐसा महापुरुष ढूंढे नहीं मिल रहा था। उन्होंने उन देशों की सरकारों से भी संपर्क किया जिन्होंने अपने बंदे अपने यान में चांद पर भेजे थे। पर उन देशों की सरकारों ने हमारी तकनीकी पर अविश्वास करते अपने बंदे किराए पर नहीं दिए।...तभी किसीको अचानक मातादीन की याद आई कि वह भी तो चांद पर जा चुके हैं।

आनन फानन में परसाई का सारा साहित्य खंगाला गया। इधर उधर उछाला गया। आखिर एक संग्रह में उन्हें इंस्पेक्टर मातादीन मिल ही गए चालान के बहाने वसूली करते। ज्यों ही वैज्ञानिकों ने इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर हिंदी में लिखा होने पर अनुवादकों से अंग्रेजी में अनुवाद करा सुना तो वे दंग रह गए। यार! बगल में छोरा, दुनिया में ढिंढोरा!

इधर मातादीन को खोजने का तुरंत प्रभावी सरकारी आदेश हुआ तो उधर तुरंत सरकार को गालियां देते सरकारी आदेश का पालन। पूरा पुलिस महकमा महीनों से खूंटियों पर लटकाई कमर पेटियां कस मातादीन की खोज में सक्रिय। पूरे विभाग का बस एक ही लक्ष्य! जैसे भी हो , मातादीन को खोजा जाए, वह जहां भी हो।

...और मजे की बात! पुलिस विभाग ने उन्हें बिन कड़ी मशक्कत के दो घंटे में ही ढूंढ लिया। उस वक्त वे अपराधियों के साथ मोक्ष पब में बैठ कई दिनों से पी रहे थे। जिस तरह उनके विभाग वाले अपराधियों के बदले शरीफों को एकाएक सूंघ लेते थे उसी तरह उन्हीं के विभाग वालों ने उन्हें सूंघ उनसे बिन कुछ कहे उनके मुंह पर काला कपड़ा पहना उन्हें वहां से उठाया और वैज्ञानिकों के समाने ला पटका । अपने को वैज्ञानिकों के बीच देख वे चौंके,‘ ये मुझे कहां लाया गया है?’ वे गिरते पड़ते अड़ते तड़ते बोले।

‘ हम तुम्हें देश सेवा के बहाने एकबार फिर चांद पर ऑन ड्यूटी विद ऑनरेरियम भेज अजर अमर करना चाहते हैं। प्लीज! न मत करना, वर्ना हमारे मिशन पर वाटर फिर जाएगा,’ सभी वैज्ञानिकों ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़े कहा तो मातादीन पिघलते चौंके,‘ एकबार फिर चांद पर?’

‘हां!’

‘ पर क्यों? पहले ही क्या देश की फजीहत कम हुई थी जो एकबार फिर.... किसी दूसरे विभाग वाले को भेज दो! मातादीन कह घर को जाने को हुए तो एक वैज्ञानिक ने उन्हें समझाते कहा,‘ बात ही ऐसी है कि...’

‘ऐसी क्या बात है कि जो... हद हो गई ये तो, इधर साहब कहते हैं कि मेरे बिना पुलिस विभाग नहीं चल सकता। उधर बीवी कहती है कि मेरे बिना घर नहीं चल सकता , तो इधर अब आप भी कह रहे हो कि मेरे बिना चांद का मिशन पूरा नहीं हो सकता! हद हो गई साहब! एक मातादीन! सौ डिमांडें?’

‘ हां, कुछ ऐसा ही समझ लो। हे! देश के गर्व मातादीन! एक्सपिरियंस इज एक्सपिरियंस! एक्सपिरियंस भी कोई चीज होती है कि नहीं? तुम वहां पर जैसे कैसे भी सही, रह आए हो। तुम्हें वहां के चप्पे चप्पे का पता है। वहां की सरकार तुमको दूर से ही आज भी पहचानती है। आज भी मत पूछो वह तुम्हें कितना याद करती है! और वहां की तुम्हारी वह प्रेमिका....’

‘मसखरी मत करो साहब! वे दिन तो वे दिन थे। अब तो बाल काले करने पर भी काले नहीं होते। दूसरे दिन को ही कालिख का साथ छोड़ देते हैं,’ कह मातादीन होश में न होने के बाद भी शरमाते होश में से दिखे।

‘कोई बात नही! इश्क का उम्र से क्या संबंध? इस बहाने तुम्हारा भी मिशन पूरा और हमारा भी। कहो मंजूर?’

‘ पर रास्ते में जो एचआरटीसी की बसों की तरह यान का फ्यूल खत्म हे गया तो? अपनी सफलता के लिए मुझे बलि का बकरा तो नहीं बना रहे कहीं आप लोग?’ मातादीन के मन में पता नहीं क्यों जिंदगी में पहली बार शंका जागी। जब कि वे आजतक जिसे मन करे उसे बलि का बकरा बनाते आए थे।

‘ यार! ये यान है यान! कोई सरकारी बस नहीं। और जो हो भी गया तो.... प्रेम के लिए तो विवाहित दीवाने भी सूली पर हंसते हुए चढ़ जाते हैं। तो क्या तुम हमारे यान पर नहीं चढ़ सकते?’

‘ जय श्रीराम! सर! पुराने इश्क और पुरानी शराब के लिए तो एमडी साहब कुछ भी कर सकता है! बम बम भोले!’

.... और मातादीन अपने पुराने प्रेम से मिलने, देश सेवा के बहाने चांद पर जाने को अपनी ही वर्दी में तैयार हो गए।

उन्होंने यान में आवश्यक सामग्री के बदले विदेशी सुरा की पांच सात पेटियां, सौ सवा सौ किलो चिकन रखवाया और बीवी को बताए बिना चांद के लिए यान पर सवार होकर ये गये कि वो गए तो विभाग ने एकबार फिर अपना सिर धुना। अबके हे भगवान, और कुछ करना या न पर एमडी साहब के हाथों डिपार्टमेंटल इज्जत जरूर बचा लेना।

एक दिन हुआ! दो दिन हुए! हफ्ता हुआ! दो हफ्ते हुए, मातादीन घर नहीं पहुंचे तो उनकी बीवी कुछ परेशान हुई। वैसे उसे पता था कि जब मातादीन कहीं ऑन ड्यूटी पार्टी शार्टी में बिजी हो जाते हैं तो हफ्ता दस दिन घर नहीं आते। पर अब दिन ज्यादा हो गए थे सो उसे उनकी याद आई और उसने गालियां देते फोन लगाया,‘ कितने दिन हो गए, कहां हो? भूल गए क्या घर के अपने काम?’

‘हे आदर्श बीवी। मैं सब कुछ भूल सकता हूं, पर अपने हिस्से के घर के काम भला कैसे भूल सकता हूं? कहो, कैसी हो?’

‘मैं तो तुम्हारे दोस्त की दया से ठीक हूं पर.....’

‘ पर क्या? घर से गायब हुए कुछ ज्यादा नहीं हो गया अबके? देख रही हूं, ज्यों ज्यों तुम्हारी रिटायरमेंट नजदीक आ रही है, त्यों त्यों तुम कुछ ज्यादा ही बेलगाम होते जा रहे हो?’

‘अबके देश सेवा के लिए निकला हूं पगली, देश सेवा के लिए!’

‘ देश सेवा! ये नई सेवा कबसे शुरू कर दी तुमने? मुफ्त की ज्यादा ही तो नहीं पी ली कहीं जो दिमाग को चढ़ गई हो?’

‘नहीं भागवान! पहली बार देशसेवा करने निकले हूं। देश सेवा बोले तो चांद पर!’ कह मातादीन ने ठहाका लगाया।

‘ फिर चांद पर? अबके फिर बदनामी करवानी है क्या?’

‘नहीं पगली! अबके तो.... दुआ करो कि तुम्हारा मातादीन अबके फिर अपने मिशन में कामयाब हो,’ मातादीन ने अपनी बीवी पर अंतरिक्ष से नकली प्यार छिड़कते से कहा तो उनकी बीवी बोली,‘ सो तो ठीक है पर.... देखो ,वहां चले ही गए तो अपना ख्याल रखना। और हां! आईटी का जमाना है, किसीके सामने भी यहां वाली शेखियां मत बघारना कि मोदी जी रोज शाम की चाय तुम्हारे साथ ही लेते हैं। कि शाह जीने तुम्हारे विचार को चुराकर की धारा तीन सौ सहत्तर खत्म की। वहां के लोग समझदार हैं। जमीन पर रहकर ही बातें करना। अबके फिर किसीके प्रेम में मत पड़ना। वरना फजीहत के सिवय और कुछ न लगेगा। अब तुम पक चुके हो। बेकार में अपनी फजीहत मत करवाना। और हां! पिछली दफा अपने साहब की बीवी को जो एड़ियां चमकाने वाला पत्थर लाए थे न! वह मुझे भी जरूर लाना। अब चले ही गए तो आल द बेस्ट! विश यू गुड लक! मेरा बचा प्यार तुम्हारी रक्षा करे। और हां ! वहां भी ज्यादा मत पी लेना। तुम्हें लिमिट से ज्यादा पीने की बहुत बुरी आदत है। वहां पीकर बकना मत। पीते पीते भी याद रखना कि घर में बूढ़ी होती ही सही! तुम्हारी एक अदद बीवी भी है। और .... और.... सुनो ! मेरी आवाज तुम्हें सुन रही है क्या?? अचानक मातादीन आउट ऑफ रीच हो गए या कि उन्होंने अपन को अपनी बीवी से आउट ऑफ रीच कर लिया? वे ही जाने।

 

अशोक गौतम,

गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड,

नजदीक मेन वाटर टैंक, सोलन-173212 हि.प्र

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