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वक्त 'एक पहेली'

  • रमनदीप सिंह
  • 30 अग॰ 2019
  • 1 मिनट पठन

वक्त भी कितना अजीब होता है...

ये उसको भी बदल देता है,

जो दिल के सबसे करीब होता है.

कभी बिन मांगे दे देता है सब कुछ,

कभी मांगकर भी कुछ न नसीब होता है.

वक्त भी कितना अजीब होता है...

दिन का उजाला हो या रात का अंधेरा,

हर घड़ी, हर पहर होता वक्त का पहरा,

जिसे चाहते हैं दिल से उसका अलग ही होता है रैनबसेरा,

इस रंग बदलती दुनिया में

ना वो मेरा, न वो तेरा,

मगर न जाने क्यों फिर भी यादों का धुंधला सा चेहरा होता है?

वक्त भी कितना अजीब होता है...

ये उसको भी बदल देता है,

जो दिल के सबसे करीब होता है.

 

मैंने अपनी पहली कविता कक्षा 6 में लिखी। कविता लिखने के साथ साथ मेरी संगीत सुनने और गीत लिखने में भी विशेष रूचि है। वर्तमान में मैं पंजाब में पॉलिटिकल हिंदी लेखक के रूप में कार्यरत हूँ।

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