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धीरज कुमार श्रीवास्तव

अहसास

आज अपने अन्तर्मन में

कुछ टूटा-सा

कुछ बिखरा-सा

कुछ अँधेरा-सा

आँखों के समक्ष

ह्दय के पास कहीं

कुछ सूना-सूना-सा

महसूस करता हूँ।

अँधेरे में डोलती

जानी-पहचानी परछाइयाँ

आँखों के समक्ष

महसूस करता हूँ।

टूट चुका है ह्दय

इस दुनिया को देखकर

इक आँसू-सा बहता

महसूस करता हूँ।

फैली है आग दुनिया में

चिल्लाते हैं लोग कितने

अपने अन्दर बस एक

कोलाहल-सा महसूस करता हूँ।

बैचेनी भरे माहौल में

लोगों के बीच बैठा हुआ

अपने मन के अन्दर कहीं

एक चीख-सा महसूस करता हूँ।

बंजा़रों की तरह

आवारों की तरह

घूमता-फिरता हूँ इधर-उधर

आज एक घर को

महसूस करता हूँ।

उदास हूँ ज़िन्दगी से

आँसू बहाता राहों में

एक बाँह को

महसूस करता हूँ।

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