आज अपने अन्तर्मन में
कुछ टूटा-सा
कुछ बिखरा-सा
कुछ अँधेरा-सा
आँखों के समक्ष
ह्दय के पास कहीं
कुछ सूना-सूना-सा
महसूस करता हूँ।
अँधेरे में डोलती
जानी-पहचानी परछाइयाँ
आँखों के समक्ष
महसूस करता हूँ।
टूट चुका है ह्दय
इस दुनिया को देखकर
इक आँसू-सा बहता
महसूस करता हूँ।
फैली है आग दुनिया में
चिल्लाते हैं लोग कितने
अपने अन्दर बस एक
कोलाहल-सा महसूस करता हूँ।
बैचेनी भरे माहौल में
लोगों के बीच बैठा हुआ
अपने मन के अन्दर कहीं
एक चीख-सा महसूस करता हूँ।
बंजा़रों की तरह
आवारों की तरह
घूमता-फिरता हूँ इधर-उधर
आज एक घर को
महसूस करता हूँ।
उदास हूँ ज़िन्दगी से
आँसू बहाता राहों में
एक बाँह को
महसूस करता हूँ।