कुछ दिन पहले किसी ने मुझे पूछा था; "सर, आप खुद से संवाद करने की बात बार-बार कहते हैं और आपकी रचनाओं में भी वो नज़र आता है ।"
उनके इस प्रश्न में वाजिब कारण मुझे लगा । हो सकता है कभी अपने मन के विचारों में कहीं न कहीं पुनरावर्तन हों । क्योंकि उस वक्त आप उस अवस्था में होते हैं, जहाँ आपका कुछ नहीं, आपके मन का चलता है । मन की चंचलता ही उसकी उद्दंडता है । ह्रदय में एक लहर सी होती है, जिसे संगीत की भाषा में लय कहते हैं । पवन की गति के साथ जैसे समंदर या पोखर का पानी हिलोर लेने लगता है तो एक लहर पैदा होती है । मैं तूफानी पवन की बात नहीं करता । मंद मलयानिल की बात करता हूँ... समीर की । ऐसी लहरों में पवन मंद गति से पानी को स्पर्श करता हुआ गुज़रता है तो लगता है जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को सहलाता है । और पानी में उठती लहर अपनी खुशी को ज़ाहिर करने के लिए आगे बढ़ती हुई किनारे से टकराकर भी पूर्ण आनंद की अनुभूति करती है । ह्रदय की स्थिति भी वैसी ही है । ह्रदय में किसी के प्रति राग-द्वेष नहीं होता । सिर्फ अहसास होता है, लहर होती है और उसी के कारण ध्वनि होती है ।
मन में अच्छाई-बुराई को पनपने की गुंजाइश होती है । इसलिए मन और ह्रदय को हम जोड़ नहीं सकते । यदि मन और ह्रदय का तालमेल हो जाएं तब आत्मा की जागृति होती है । आत्मा का अस्तित्व मन और ह्रदय से अलग है ।
सबसे बड़ी बात ... हमने स्वयं से पिछली बार कब संवाद किया था ? हम स्वयं से कभी संवाद नहीं करते.. संवाद का प्राथमिक अर्थ है - हमारी वाणी, हमारा व्यवहार, हमारा समाज में स्थान और प्रत्येक व्यक्ति से आदान-प्रदान । अपने अंदर से वैचारिक विकारों को हम अपनी सकारात्मक सोच के द्वारा मिटा सकते हैं । इस से चैतन्यता की कुछ अनुभूति हो सकती है । अंदर ही अंदर सारे सवालों के समाधान अपनेआप होने लगेंगे । जब अंतर्मन की सोच बदलेगी तो हमें सुख का अनुभव होगा । उसके लिए हमें कोई प्रयत्न करने की जरुरत नहीं पड़ेगी । सब कुछ सहजता से और अविरल होने लगेगा । ऐसे में हमारी प्रगति के लिए अनगिनत दिशाएं खुलेगी । हमारे अंदर साहसिक वृत्ति प्रकट होगी । सत्य का बल मिलेगा और हम पर किसी भी नकारात्मक ऊर्जा का असर नहीं होगा, क्योंकि हमारे अंदर का सत्व, शील और संस्कार के साथ मन की ताकत और ह्रदयतल की लहरों का संगीत हमें भटकने नहीं देगा । तब हमारे आसपास एक अदृश्य आभा मंडल बनेगा जो हमारे प्रति लोगों के आकर्षण का कारण बनेगा । ♦
पंकज त्रिवेदी
ગુજરાતી - हिन्दी साहित्यकार एवं संपादक - विश्वगाथा (हिन्दी साहित्य की त्रैमासिक प्रिंट पत्रिका)
सुरेन्द्रनगर (गुजरात)
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