अंधियारे से सीख, हे मानव जीवन इतना भी सरल नहीं जो अब भी न सीख सका तो खो कर पाने का अर्थ नहीं। धन, मकान,अहम् धरा रहेगा जाएगा कुछ तेरे साथ नहीं। समय का चक्र ही है सिखाता धर्म ,सदाचार के बाद है कहीं। अपना पराया जल्द समझ ले वक्त का साया गुम हो न कहीं। पछता कर क्या कर पाएगा? न होगा जब तेरे पास कोई। क्षमा,दया,सुविचार ही धर्म है मानवता का है श्रृंंगार यही। हर बात में सीख हँसना हँसाना रोने के लिए तो है उम्र पड़ी। जीवन का कर रसपान हर दिन व्यर्थ ही न गुजर जाए यह कहीं। जीवन खुद में ही है मधुशाला खोज इसी में नित चाह नई।
.............अर्चना सिंह 'जया'
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