आँखें नहीं देख पातीं दूर की चीजें
बेशक दूर में रौशनी भी है और जीवन भी
आँखों से दीखता है सिर्फ अगला पग
उसके बाद फिर अगला पग
इससे ज्यादा देखने से दुखती हैं आँखें
जिस्म से ज्यादा दुखने वाली आंखों का सच
पथराई पिंडलियाँ और लहूलुहान तलवों को पता है
हर बार लगता है हिम्मत देगी जवाब
हर बार कम होती है एक पग दूरी
मत देखो हमें अचरज से
हम कोई बाज़ीगर या जादूगर नहीं हैं
न कोई तमाशा दिखाने वाले हैं
मत देखो हमदर्दी से हमें
अपनी हमदर्दी बांट लो अपने बीवी-बच्चों में
कम से कम वह तो ख़ुश रह सकें
वैसे भी एक अंतहीन ऊब ने फांस रखा है तुम्हें
और तुम खुद पर दया दिखलाओ
कि हमारा दुख हमारा नसीब है
यह कहीं पहुंचकर भी खत्म नहीं होगा
अनवर सुहैल
09 अक्टूबर 1964 /जांजगीर छग/
प्रकाशित कृतियां:
कविता संग्रह:
गुमशुदा चेहरे
जड़़ें फिर भी सलामत हैं
कठिन समय में
संतों काहे की बेचैनी
और थोड़ी सी शर्म दे मौला
कुछ भी नहीं बदला
कहानी संग्रह
कुजड़ कसाई
ग्यारह सितम्बर के बाद
गहरी जड़ें
उपन्यास
पहचान
मेरे दुख की दवा करे कोई
सम्पादन
असुविधा साहित्यिक त्रैमासिकी
संकेत /कविता केंद्रित अनियतकालीन
सम्मान / पुरूस्कार
वर्तमान साहित्य कहानी प्रतियोगिता में ‘तिलचट्टे’ कहानी पुरूस्कृत
कथादेश कहानी प्रतियोगिता में ‘चहल्लुम’ कहानी पुरूस्कृत
गहरी जड़ें कथा संग्रह को 2014 का वागीश्वरी सम्मान / मप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन भोपाल द्वारा
सम्प्रति:
कोल इंडिया लिमिटेड की अनुसंगी कम्पनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स के हसदेव क्षेत्र /छग/ में वरिष्ठ प्रबंधक खनन के पद पर कार्यरत
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