घर छोड़ के निकले थे तुम, कुछ काम और नाम बनाने को, शहर ने बेवक़्त बेबस कर दिया तुम्हे, अपनी किस्मत आज़माने को..
अब घर सुरक्षित जल्दी पहुँचो, वापिस कतई ना आना, शहरी ज़रूरतमंदो को, अपना हुनर फिर ना दिखाना..
ना छोड़ना अपने परिवार को, किसी और के भरोसे, नहीं मिलता शहर में कोई, जो प्यार से खाना भी परोसे..
गाँव है छोटा पर है वहाँ, सुख शांति परिवार, अपने खून पसीने से कमाओ, वहीँ पे पैसे चार..
अवसर होंगे कम, शायद मुश्किलें भी अनेक, मिलकर आगे बढ़ेंगे सब, अगर इरादे हों नेक..
क्या रखा है शहर में, जो गाँव में ना हो हासिल, बस करलो वादा खुदसे, लगाके दिमाग और दिल..
झोंक दो अपनी पूरी ताकत, गाँव को ही शहर बनाने को, कसम खा लो, अब गाँव ना छूटे, शहर खड़ा करवाने को..
अब ना निकलना गाँव से, अपना नाम बनाने को, छोड़ दो शहर को अपने हाल में, खुदकी किस्मत आज़माने को….
अमितांशु चौधरी
इंजीनियरिंग के स्नातक
टाटा ट्रस्ट की ग्रामीण योजनाओं में कार्यरत
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