कभी कभी मन में आता है कि, शांति से पूछूं तुमसे हे भगवान,
हम तो चला रहे थे ज़िन्दगी, कर के बस जैसे तैसे काम,
कुछ गलती हो गई क्या हमसे, कि तुम तो रूठ ही गए भगवान,
बता दीजिये सीधे से कि चाहिए क्या तुमको भगवान..
कहीं कोरोना का क़हर, कहीं अम्फन का त्राहिमाम,
एक तरफ टिड्डो से बचें, तो एक तरफ भवंडर निसर्ग महान,
एक ही बार में परलोक सिधार दीजिये ना भगवान,
किन्तु ये बता दीजिये की क्या, चाहिए क्या तुमको भगवान..
सुनते हैं कलियुग ख़तम और ला रहे सतयुग तुम भगवान,
पर क्या, हम ही मिले थे, करने को इस युग से नए युग में प्रस्थान?
गर था ऐसा तो बनाते ना हमें भी अर्जुन या भीम सा बलवान,
परन्तु कर दिए उसमें कंजूसी, बना दिए हमें तुच्छ इंसान,
फिर काहे उठाएं ये भोझा, और काहे करें इतना बलिदान,
बोलिये ना, अब बोल भी दीजिये की क्या चाहिए क्या तुमको भगवान..
कितनो ने तो ज़िन्दगी का अब तक, किया भी नहीं एहतेराम,
उन् बच्चो की क्या भूल, जो अभी भी हैं अबोध नादान,
कर्मो का गर फल होता है तो दे दीजिये, सबको अपने हिस्से का अंजाम,
काहे मचा रहे इतना उत्पात, और इतना सारा कोहराम,
अब बता भी दीजिये क्या चाहिए क्या आपको भगवान..
मानते हैं पाप का घड़ा भर दिया है प्रत्येक इंसान,
नेता हो या चोर, फिर हो चाहे डाकू या साधू महान,
सब करें गंदगी चहुओर और पापो के ढेर तमाम,
इंसानियत बेच खाये हैं, बन गए हैं सब हैवान,
बेबस लाचार को कुचलते, करते सबके मंसूबे नाकाम,
मारे जाते अजन्मे बच्चे, तो कही पशु बेज़ुबान,
पर कलियुग में, यही सब नहीं करना था क्या हमें काम?
बनाया हमें गर ऐसा, तो कुछ तो तुम भी भुक्तो ना भगवान,
सहो थोड़ा तुम भी, और देखो कैसा बन गया इंसान,
जैसा बनाया तुमने, वही सब तो कर रहा ना इंसान,
एकदम से पलड़ा मत झाड़ो, एक बात समझ लो हे भगवान,
पाप का घड़ा अभी भरा नहीं, करने हैं कई और पापी काम,
अभी समय नही आया विध्वंस का, ना करो अभी से नव निर्माण,
सतयुग के प्रस्थान को अभी तैयार नही कलियुग का इंसान,
ना करो विध्वंस अभी, ना करो अभी नव निर्माण,
बुझे की नहीं? अब क्या बच्चे की लोगे जान,
रोक दो सब विध्वंस अभी, कर लेना पुनः कभी नव निर्माण….
अमितांशु चौधरी
इंजीनियरिंग के स्नातक
टाटा ट्रस्ट की ग्रामीण योजनाओं में कार्यरत
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