जब सड़क पे बाईकर चलता है
- अखतर अली
- 16 अग॰ 2020
- 5 मिनट पठन

जब बाईकर अपनी बाईक पर जा रहा होता है तब ऐसा लगता है मानो सड़क इसके बाप ने बनवाई है जिसका ये एकमात्र वारिस है | बांये चलने से इन्हें सख्त ऐतराज़ है , किसी को साईड दे देना इनको अपना अपमान लगता है , चौराहे पर अगर लाल बत्ती जलती है तो ये ऐसा सड़ा मुंह बनाते है मानो इनकी तो लुटिया ही डूब गई | हरी बत्ती जलते ही इतना हार्न बजाते है जैसे सामने वालों को नींद लग गई हो |
हार्न ये आवश्यकता अनुसार नहीं अपनी मर्ज़ी अनुसार बजाते है | कभी सूनी सड़क पर लगातार हार्न बजाते हुए जाते है और कभी इनकी गाड़ी से ठोकर खाकर कोई भले चोटिल हो जाये पर ये हार्न नहीं बजाते | इनकी ट्रेफ़िक नियम पर ज़रा भी आस्था नहीं होती | पीछे आने वाली गाड़ी और आगे जाने वाली गाड़ी से इनका व्यवहार ऐसा होता है मानो पुरानी खानदानी दुश्मनी हो | पीछे वाली गाड़ी का हार्न ये सुनते नहीं और आगे वाली गाड़ी को ये हार्न सुनाते नहीं | कभी किसी परिचित को यह सोच कर लिफ्ट नहीं देते कि मैंने गाड़ी इनके लिये थोड़ी खरीदी है |
इनको जिद होती है कि ये कभी दांये बांये , आगे पीछे नहीं देखेगे | इनको अगर गाड़ी रोकना है तो बस रोक देगे , मोड़ना है तो बस मोड़ देगे | इनका फंडा यह है कि पीछे आने वाले आदमी के चेहरे पर आँख भी है और उसकी गाड़ी में ब्रेक भी है , उसे वह इस्तेमाल करेगा और नहीं करेगा तो मरेगा , इसमें उनकी क्या गलती है ? हर गाड़ी की तरह इनकी गाड़ी में भी ब्रेक होता है लेकिन ब्रेक से इनके संबंध हमेशा संदिग्ध रहते है , ब्रेक से इनका ब्रेकअप होता रहता है |
ब्रेक से इनके रिश्ते को आज तक कोई नहीं समझ पाया | कभी तो सूनी सड़क पर तेज़ी से भाग रही गाड़ी में बेवजह ब्रेक मारेगे कि पांच फुट तक सड़क पर निशान बन जाएगा और ऐसी रगड़ने की आवाज़ होगी कि हर आदमी इन्हें मुड़ मुड़ कर देखने लगेगा , इनका सारा मज़ा इसी देखने दिखाने में है | कभी सामने वाले की गाड़ी से टकरा तक जायेगे पर ब्रेक नहीं लगायेगे |
इनकी गाड़ी में इंडीकेटर भी होता है | इन्हें जब मुड़ना होता है तब कभी इंडीकेटर नहीं जलायेगे , अगर जलायेगे तो भी ऐसा जलायेगे कि मुड़ना दांये है इंडीकेटर बांये तरफ़ का जलायेगे , कभी मुड़ना नहीं भी है तो भी इंडीकेटर चालू कर देगे | इंडीकेटर इस्तेमाल के लिये नहीं सुंदरता के लिये रखते है |
किश्तों में उठाई गई बाईक को ये जान से ज़्यादा प्यार करते है हालांकि आज तक एक किश्त भी नहीं पटाये है तब ये आलम है , अगर पैसा पटा दिये होते तो एक पल के लिये भी बाईक को अपने से जुदा नहीं करते | अगर बिस्तर पर बाईक को ले जाना संभव होता तो ये बाईक के साथ ही सोते | घर सड़ रहा है , बच्चे मैले कुचैले घूम रहे है और ये पूरे समय बाईक को चमकाने में लगे रहते है | खुद तो बिना साबुन के नहाते है पर बाईक को शेम्पू से रगड़ रगड़ कर धोते है | जब बाईक पर कही जाते है , वैसे ये जहां भी जाते है बाईक पर ही जाते है , बिन बाईक के ये कही नहीं जाते है | सुबह सुबह घर से दस कदम की दूरी पर दूध भी लेने जाना होता है तो ये बाईक पर जाते है | सब्जी मंडी में बाईक घुसा देते है , बाईक में बैठे बैठे ही धनियाँ , मिर्ची , टमाटर , आलू प्याज लेते है | बाईक पर बैठे बैठे ही गुटका खाते है और चलती बाईक पर से ही सड़क पर थूकते है |
हाँ तो जब ये सुबह जाने के लिये अपनी बाईक स्टार्ट करते है तो आधा घंटे तक एक्सीलेटर कम ज़्यादा करते रहते है | जब तक समूचे वातावरण में इनकी भूर्र भूर्र नहीं गूंज जाती , आस पड़ोस के खिड़की दरवाज़े में इनकी बाईक का धुआँ नहीं प्रवेश कर जाता ये एक्सीलेटर से हाथ नहीं हटाते है | एक्सीलेटर बढाये जाते है और इधर उधर देखते भी जाते है कि सब देखते तो है ? जब ये बाईक लेकर चले जाते है तब मोहल्ले के लोग राहत की सास लेते है , शुक्र मनाते है और आसमान की तरफ़ देख कर दुआ मांगते है कि – यह सुबह का निकला अब शाम को ही लौटे | कमाल यह है कि कभी कभी इन की दुआ कुबूल भी हो जाती है |
सुबह जाने से ज़्यादा आतंक तो ये शाम को आने पर मचाते है | घर पहुच कर भी ये बाईक से उतरते नहीं है , बल्कि घर में से किसी को बुलाने के लिये बाईक पर बैठे बैठे हार्न बजाना शुरू करते है | जब इनका कर्कश हार्न बिना रुके बजना शुरू होता है तो हर दरो दीवार हिल जाती है , लोगो के कान के पर्दे फट जाने की नौबत आ जाती है , कुछ देर के लिये लोग मोबाईल पर बात करना बंद कर देते है , फुल वाल्यूम में चलने वाले टीवी में भी कुछ सुनाई नहीं देता | चारो दिशाओं में दो दो किलो मीटर तक संदेशा पहुच जाता है कि बाईक वाले बाबा आ गये है | अगर हार्न की आवाज़ सुनाई नहीं देती है तो उनके घर वालों को सुनाई नहीं देती है | इनको जिद है कि हार्न बजाना बंद नहीं करेगे और उनको जिद है कि हम नहीं सुनेगे तो नहीं सुनेगे | भारत – पाक क्रिकेट मैच के अंतिम ओव्हर वाली तनावपूर्ण स्थति निर्मित हो जाती है | दर्शक दिल थामे सांस रोके टकटकी लगाये देखते रहते है कि अब क्या होगा ? आख़िरकार घरवाली टीम का विकेट गिरता है | थोड़ा सा दरवाज़ा खुलता है उसमें से एक मरियल सा बच्चा , फिर दूसरा मरियल सा बच्चा और फिर तीसरा मरियल सा बच्चा निकलता है , उनके पीछे पीछे एक बांस जैसी औरत भी निकलती है | ये सब बाईक के हैंडल में लटक रहे सामानों को लेकर अंदर जाते है , बाकी जनता भी अपने अपने काम में लग जाती है और इस तरह वातावरण में तूफ़ान के बाद की शांति स्थापित हो जाती है |

अखतर अली
जन्म 14 अप्रेल 1960 , रायपुर ( छत्तीसगढ़)
मूलतः नाट्य लेखक एवं व्यंग्यकार | इसके अतिरिक्त समीक्षा , आलेख , एवं लघु कथाओं का निरंतर लेखन | अमृत संदेश , नव भारत , दैनिक भास्कर , नई दुनिया ,रांची एक्सप्रेस , राजस्थान पत्रिका ,पंजाब केसरी , वागर्थ , बालहंस ,सुखनवर , सामानांतरनामा, कलावासुधा , इप्टा वार्ता , सूत्रधार , कार्टून वाच , दुनियाँ इन दिनों आदि आदि पत्रिकाओं में रचनाये प्रकाशित |
हबीब तनवीर से रंगमंच का प्रशिक्षण |
अनेको नाट्य स्पर्धाओं में सम्मेलनों , गोष्ठियों में शिरकत |
लिखित प्रमुख नाटक है –
निकले थे मांगने , किस्सा कल्पनापुर का , विचित्रलोक की सत्यकथा , नंगी सरकार , अमंचित प्रस्तुति , खुल्लम खुल्ला , सुकरात , अजब मदारी गजब तमाशा , एक अजीब दास्ताँ , दर्द अनोखे प्यार के |
प्रमुख नाट्य रूपांतरण –
ईदगाह ( मुंशी प्रेमचंद )
किस्सा नागफनी ( हरिशंकर परसाई )
अकाल उत्सव ( गिरीश पंकज )
मौत की तलाश में ( फ़िक्र तौसवी )
टोपी शुक्ला ( राही मासूम रज़ा )
बाकी सब खैरियत है ( सआदत हसन मंटो )
असमंजस बाबू ( सत्यजीत रे )
जितने लब उतने अफसाने ( राजी सेठ )
एक गधे की आत्म कथा ( कृष्ण चंदर )
बियालिस साल आठ महीने ( सआदत हसन मंटो )
सात दिन
तुमने क्यों कहा था कि मै ( यशपाल )
खुबसूरत हूँ
काली शलवार (एक पात्रीय) ( मंटो )
प्रमुख नुक्कड़ नाटक –
नाटक की आड़ में , लाटरी लीला , खदान दान |
सम्पर्क – अखतर अली ,निकट मेडी हेल्थ हास्पिटल , आमानाका , कुकुर बड़ा , रायपुर |मो.न. 9826126781 Email – akhterspritwala@gmail.com
अखतर अली
निकट मेडी हेल्थ हास्पिटल
आमानाका , रायपुर ( छत्तीसगढ़ )
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