top of page

आशा (निर्णायक कहानी)

  • अनुराग शर्मा
  • 17 जन॰ 2020
  • 3 मिनट पठन

सोमवार का दिन वैसे ही मुश्किल होता है, ऊपर से पहली तारीख़। अपने-अपने खाते से तनख्वाह के पैसे निकालने वाले फ़ैक्ट्री मज़दूरों से बैंक भरा रहा। बाद में कैश गिनना, बंडल बनाना, कटे-फ़टे नोटों को बही में लिखकर अलग करने आदि में सरदर्द हो गया। वापस घर के लिये निकलने में थोड़ी देर हो गई थी। लेकिन जून महीने की दिल्ली तो रात में भी किसी भट्टी की तरह सुलगती है। अपना खटारा स्कूटर लिये मैं घर की ओर निकला तो यूँ ही हाइवे पर चाय के एक खोखे पर नज़र पड़ी और दिल किया कि रुककर एक कप चाय पी जाये।

“सलाम बरमा जी।” दुकानदार ने मुझे देखकर अपने दायें हाथ से माथा झटका तो मुझे लगा कि बैंक का कोई ग्राहक होगा इसलिये मेरा नाम जानता है।

“देक्खा बरमा जी, बताओ तो सही, मैंने कैसे पैचाणा आपको?”

“बैंक में देखा होगा ... एक कप चाय दो, एकदम कड़क।“

“एक चाय लगा बाबूजी को, पेशल मेहमानों वाली, दुकान के खाते में” कारीगर को चाय का ऑर्डर देकर वह फिर मुझसे मुखातिब हुआ, “बाऊजी, मैंने आपकी किताब्बें पढ़ी हैं। आप तो सब कुछ मेरेई बारे में लिखते हैं।”

अब चौंकने की बारी मेरी थी, “तुम्हारे बारे में? यह कैसे भला?”

“वह नई सराय वाली कहानी मेरी है, हुँआ के ही तौ हैं हम ... और वो ‘दुरंत’ कहानी में जब सम्पादक अपने नौकर से ‘ओ खब्बीस ...’ कहता है, वो भी तो मेराई डायलॉग है।” इत्ना कहकर वह ज़ोर से चिल्लाया, “ओ खब्बीस ...”

न जाने कहाँ से एक मरियल से लड़के ने आकर डरते-डरते नरमी से पूछा, “बुलाया मालिक?”

“ना ना, वोई तो मैं बरमा जी को समझा रिया था ... अब तू जा, अपना काम कर,” फिर मेरी ओर मुखातिब होकर बोला, देख लिया आपने? सौ फीसदी मेराई डायलॉग है जे।”

उसके पास मेरी चोरी का सबूत था, मैं क्या कहता? वह बोलता रहा, मैं सुनता रहा।

“और वह ... गधा वाली कहानी में ... खलनायक का नाम ... लित्तू, वह भी मेरा ही रख लिया ...”

“गधा नहीं भई, गदा, गदा वाली कहानी। मैंने तो बहुत सोच समझकर ऐसा नाम रखा था जो किसी का न हो ... लित्तू भाई”

“हाँ हाँ, वोई। नाम किसी का न हो का क्या मतलब है? मैं सामने बैठा तो हूँ, लितू परसाद। ऊपर बोर्ड नहीं देखा क्या? एल परसाद टी स्टाल। जे हूबहू मेरा ही नाम है।”

“माफ़ करना भाई, पता नहीं था।”

“माफ़ी किस बात की साहेब? वो देखिये… सामने रखी हैं आपकी किताबें। हर कहानी खुद पढ़ी है, खाली टेम में कभी-कभी एकाध पन्ना पढ़कर गिराकों को भी सुना देता हूँ। आपने तो अपनी कहानियों में जगह देकर मुझ जैसे ग़रीब चायवाले को मशहूर कर दिया। आपके लिये चाय मट्ठी बिस्कुट, सब मुफ़्त है इस दुकान में। जब चाहे आ जायें, जो चाहें, पियें खाएँ।”

मेरा सरदर्द काफ़ूर हो चुका था अपने नये पाठक से मिलकर। मैंने उठकर उसे गले लगा लिया। हिंदी कहानी के पाठक का जीवित होना मेरे लिये आशाजनक था।


 

महात्मा गांधी संस्थान, मॉरिशस द्वारा स्थापित प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय द्वैवार्षिक पुरस्कार ‘आप्रवासी हिंदी साहित्य सृजन सम्मान’ के प्रथम विजेता अनुराग शर्मा एक लेखक, सम्पादक, किस्सागो, कवि और विचारक हैं। ‘आनंद ही आनंद’ संस्था द्वारा उन्हें 2015-16 का ‘राष्ट्रीय भाष्य गौरव सम्मान’ प्रदान किया गया था। विश्व हिंदी सचिवालय की एकांकी प्रतियोगिता में उन्हें पुरस्कार मिल चुका है। हिंदी लेखकों की वैश्विक ‘राही’ रैंकिंग में उनका चालीसवाँ स्थान है।

आईटी प्रबंधन में स्नातकोत्तर अनुराग पिट्सबर्ग के एक संस्थान में अहिंदीभाषी छात्रों को हिंदी का प्रशिक्षण देते हैं। वे हिंदी तथा अंग्रेज़ी में प्रकाशित मासिक पत्रिका सेतु (ISSN 2475-1359) के संस्थापक, प्रकाशक तथा प्रमुख सम्पादक हैं। वे रेडियो प्लेबैक इंडिया के सह संस्थापक, तथा पिटरेडियो के संस्थापक हैं।

प्रकाशित कृतियाँ

अनुरागी मन (कथा संग्रह); देशांतर (काव्य संकलन); एसर्बिक ऐंथॉलॉजी (अंग्रेज़ी काव्य संकलन); पतझड सावन वसंत बहार (काव्य संग्रह); इंडिया ऐज़ ऐन आय टी सुपरपॉवर (अध्ययन); विनोबा भावे के गीता प्रवचन की ऑडियोबुक; सुनो कहानी ऑडियोबुक (प्रेमचन्द की कहानियाँ); हिन्दी समय पर कहानियाँ; तकनीक सम्बन्धी शोधपत्र, कवितायें, कहानियाँ, साक्षात्कार, तथा आलेख अंतर्जाल पर, पत्रिकाओं व हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित

Commenti

Valutazione 0 stelle su 5.
Non ci sono ancora valutazioni

Aggiungi una valutazione

आपके पत्र-विवेचना-संदेश
 

ई-मेल में सूचनाएं, पत्रिका व कहानी पाने के लिये सब्स्क्राइब करें (यह निःशुल्क है)

धन्यवाद!

bottom of page