कमरें में प्रवेश करते ही एक जानी पहचानी सी खूशबू उसकी रूह में उतर गई।
जाने क्यों दिल की धड़कन तेज होने लगी।
डरते डरते वह टेबल के पास पहुंच गई और बोली,
"गुड..गुड मॉर्निंग सर!"
"गुड मॉर्निंग!बैठो।"सिर को बिना उठाए उसनें जवाब दिया।
"थैंक्यू सर!"बोल कर वह कुर्सी पर बैठ गई।उसकी निगाहें सामने ही टिकी थी।इस ऑफिस में पहला दिन था और बॉस से पहली मुलाकात लेकिन यहाँ पर सब अपना सा क्यों लग रहा है यह सोच कर सुनंदा का मन बेचैन था।
"तो,कैसा लगा ऑफिस?"सामने बैठे शख्स ने उससे पूछा।
"अच्छा...!"शब्द पूरे ही नहीं कर पाई।आश्चर्यचकित सी वह बॉस.का चेहरा देखने लगी।
"क्या हुआ मिस सुनंदा?सब कुछ ठीक है ना!"बॉस ने कहा।
"जी..जी सब ठीक है सर...मैं सुनंदा..आपकी.. स..स.....सेक्रेटरी।"अटकते हुए उसनें जवाब दिया।
"हाँ..मैं जानता हूँ।पर आप कुछ परेशान लग रही हो।अगर कोई दिक्कत है तो मुझसे कह सकती हो।"
"नहीं सर ऐसा कुछ नहीं है.. वो..मैं बस थोड़ा नर्वस..।"
"रिलैक्स।ऐसा होता है लेकिन आप कोई पहली बार जॉब नही कर रही हैं।आपका सीवी देखा है अच्छी तरह अनुभवी है।"बॉस ने उसे सहज करते हुए कहा।
सुनंदा ने हाँ में सिर हिलाया।पता नहीं वह.क्या क्या कहता रहा और वह मंत्रमुग्ध सी सुनती रही।
इतने सालों में आज फिर दिल में कुछ हरियाली महसूस कर रही थी।
उसके कानों में संगीत बज रहा था।
"तो ठीक है।अब आप अपना काम समझ लीजिए।"
"ओ ..हैलो!तबीयत ठीक है ना।कर पाओगी आप?"मेज पर हाथ मारकर बॉस ने कहा।
वह सपनों से निकल कर चौक गई।
"जी सर बिल्कुल।आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।"इतना कह वह रूम से निकल कर अपनी टेबल की ओर चल दी।
उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस शख्स के शब्दों को पढकर वह दोबारा जीने लगी थी वह अचानक यूँ जिंदगी में आ जायेगा।
मन मयूर सा नाचने लगा
…………...
ऑफिस में जैसे गुलमोहर बिखर गए थे।वह महक जिसे भूल चुकी थी आज फिर से उसे महका रही थी।
"शेखर"हाँ यही नाम तो उसे जिंदगी में वापस खींच लाया वरना वह तो अतीत के भंवर में डूब ही चुकी थी।
वही शेखर आज यूँ सामने... मन में एक सिरहन सी दौड़ गई।
"मिस सुनंदा!काम को ठीक से समझ लीजिए और कल मुझे रिपोर्ट कीजिए।एक मीटिंग की जिम्मेदारी आपको जल्दी दी जायेगी।"अचानक से आकर बॉस ने सुनंदा को कहा और उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ऑफिस से निकल गए।
सुनंदा उन्हें जाते देखती रही।
पूरा दिन कैसे निकल गया वह नही जानती थी।शाम हो गई पर बॉस ऑफिस वापस नहीं लौटे।वह क्यों इंतजार कर रही थी खुद नहीं जानती थी।
ऑफ हो गया था एक एक कर सब ऑफिस से जाने लगे पर वह अभी भी कम्प्यूटर खोले बैठी थी।
"मैडम!छूट्टी हो गई है आपको नही जाना?"चपरासी ने उसकी टेबल को खटखटा कर कहा।
"हाँ..बस निकल रही हूं।"वह मुस्कुरा कर बोली।
बस में बैठकर सबसे पहले उसनें फेसबुक ऑन की।
हमेशा की तरह निगाहों ने शेखर की पोस्ट को ही तलाशा पर आज कुछ नहीं लिखा शेखर ने।
वह तो पीना चाहती थी शब्दों की मदिरा जिन्हें पीने से उसका दर्द कम हो जाता था।
हल्दी बारिश होने लगी।बस की खिड़की से बूंदें फुहार बनकर उसके चेहरे को भिगोने लगी।
कब घर आया और कब वह.दरवाजे पर पहुंची नहीं पता चला।
डोरबेल बजाती उससे पहले ही माँ ने दरवाजा खोल दिया।
"अरे!छाता तो था फिर भीग कैसे गई?"माँ ने सुनंदा से पूछा।
"ओह.. ध्यान नहीं रहा माँ..पता नहीं चला भीगने का भी।"सकपका कर सुनंदा ने कहा।
"तुम ठीक तो हो ना!ऑफिस में सब ..।।"माँ की आवाज में हजार चिंताएं एक साथ बोल उठी।
"हाँ माँ..सब बहुत बहुत अच्छा है।मैं नहा कर आती हूँ एक कप कॉफी बना दो ना माँ!"गले में बाँह डालकर उसनें कहा।
"हाँ..जाओ जल्दी आओ।"माँ आश्चर्य में थी।सुनंदा के रूखेपन में कमी देख वह खिल उठी।
शॉवर के हर धार में जैसे कोई गीत गुनगुना रहा था।यह कुछ अजीब सा एहसास था जो उसके दिल में उठने लगा था।
आज दिनों बाद उसने अपने चेहरे को आईने में देखा।आँखों में एक ख्वाब दिख रहा था।
गीले बालों में जैसे मोती झलक रहे हो।वह मुस्काई और बाथरूम से निकल गई।
---
"माँ!कहाँ खोई हो?"गैस बंद कर सुनंदा ने माँ को कहा।
"क्या हुआ माँ?तबीयत ठीक है ना!"
"ओह... हाँ सुनंदा.. क्या हुआ सब ठीक तो है।अरे.. ये बर्तन...!!"बर्तन की हालत देख सुनंदा की माँ हडबडा गई।
"जल गया!कुछ तो बात है माँ।आप परेशान हो तभी तो कॉफी जल गई .।"सुनंदा ने माँ के चेहरे को देखकर कहा।
"चल तू जा मैं लाती हूँ कॉफी।"माँ ने कहा।
"नहीं माँ,आप बैठो मैं बना रही हूं।"सुनंदा ने गैस पर दूध चढाकर कहा।
थोडी देर में कप में कॉफी लिए वह माँ के साथ बालकनी में खड़ी थी।
"आज तेरे चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर एक सकून मिल रहा है दिल को।"माँ ने कहा।
सुनंदा बस हल्के से मुस्कुरा दी।
अतीत की बीती हुई यादों से कहीं न कहीं सुनंदा की माँ भी जख्मी थी।उनकी जिंदगी के दाग सुनंदा के दामन पर पड़ गए थे जिसके कारण वह तिलतिल मर रही थी।
"माँ!कहाँ खो गई फिर से?"सुनंदा ने कंधे पर हाथ रखकर कहा।
"कहीं नहीं बेटा.... सोच रही थी माँ अपने बच्चे की जिंदगी में वरदान बनकर रहती हैं लेकिन मैं तो तेरे लिए अभिशाप बन गई हूँ"आँखों को पल्लू से पोछते हुए सुनंदा की माँ ने कहा।
"ऐई रेखा... मीना कुमारी न बन..क्या माँ,कैसी बातें करने लगती हो आप!"सुनंदा ने माँ के गले लगते हुए कहा।
"हाँ..ये नाम ही तो तेरे जीवन को बर्बाद कर गया।जो यह तेरे साथ नहीं जुडा होता तो आज विवेक के साथ जिंदगी में आगे बढ गई होती।"माँ ने कहा।
"माँ आप भूल क्यों नहीं जाती यह सब?मैं उस घटिया आदमी को याद नहीं करना चाहती और न ही उसका नाम सुनना चाहती हूं।"सुनंदा ने नफरत से कहा।
"पर वर कुछ नहीं....दोबारा खुद को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश न करना।"सुनंदा गुस्से से कमरें में चली गई और बिस्तर पर पसर गई।
कुछ देर यूँही पडी रही... आँखों से दर्द बहने लगा..।।
तभी फोन पर नोटिफिकेशन साउंड बजी।हाथ में फोन लिए वह उसे यूँही देखती रही... ....फोन की स्क्रीन खोलते ही सबसे पहले वह फेसबुक खोलती है।
नोटिफिकेशन चेक करने लगती हैं तभी एक जगह नजर ठहर जाती है।
उन चंद पंक्तियों को पढकर वह अपनी सारी पीड़ा भूलकर मुस्कुरा दी,
शेखर की पोस्ट थी।
प्रेम में पीड़ा होती है गहन पीड़ा और मैं उस पीड़ा में आनंद महसूस करता हूँ।हाँ मैं प्रेम करता हूँ उन आँखों से जो मेरे ख्वाबों में चली आती है लेकिन आज जाने क्यों ऐसा लगा जैसे वह निगाहें मेरे सामने हकीकत बन आ गई हो....
इससे पहले की मैं दीवाना हो जाता मैंने खुद को दूर कर दिया पर कुछ देर के लिए और कह दिया कि फिर चली आना आज मेरे ख्वाबों में।
एक एक शब्द पढती गई उसे लग रहा था जैसे यह उसके लिए ही लिखा गया हो।
जाने क्या था उन निगाहों में
जो हम उनके तलबगार हुए....
सुनंदा को इंतजार होने लगा सुबह का....
सामने शेखर बैठे उसे मीटिंग की जानकारी दे रहे थे और वह सब नोट कर रही थी।
डायरी पर झुके हुए वह बस शेखर को सुन रही थी कि तभी किसी ने उसके चेहरे पर लपकते बालों को हटाया, वह घबरा कर खडी हो गई...
घडी का अलार्म बज रहा था और वह अपने बिस्तर पर थी।
"ओह.... पगली... सपना देख रही थी..।"खुद पर हँसती हुई वह तैयार होने के लिए चल दी।
आईने के सामने खड़े होकर सुनंदा ने एक बार अपने चेहरे को निहारा।थोड़ी देर यूँही खुद को देखती रही।
"कितनी लापरवाह हो गई हूँ मैं खुद के लिए ही।"वह मन ही मन बुदबुदाई।ड्रेसिंग टेबल की ड्रार खोल कर काजल निकाला और ढेर सारा आँखों में भर लिया।
हल्की सी लिपस्टिक होंठों पर लगा ली।बालों में कल्च लगातार कुछ लटों को यूँही छोड दिया।
खुद को देखकर वह हल्के से मुस्काई।
कमरे के दरवाजे से माँ उसे ही देख रही थी।आज सुनंदा के चेहरे पर एक अलग सी चमक थी।बिल्कुल वैसी ही जैसी तीन साल पहले उसके मुख पर रहती थी।
"अच्छी लग रही हो।"माँ ने कहा।
"माँ….!!वो वो बस..ऐसे ही...।"माँ को देख वह घबरा सी गई।
"सच में बहुत प्यारी लग रही हो।कुछ खास बात है क्या?"माँ ने उससे पूछा।
"ओहो..माँ!खास क्या होगा?अब ऑफिस ऐसे लल्लू बनकर तो नहीं जा सकती ना!"सुनंदा ने कहा।
"हम्म!"माँ ने मुस्कुराते हुए कहा और कमरे से बाहर चली गयी।
सुनंदा ने फोन उठाया और टाइम देखा फिर फेसबुक खोल कर शेखर के पेज पर पहुंच गई।
आज जाने क्यों गुलाबी होने का जी करता है
खुदा जानता है यह दिल उन पर ही मरता है।
तुम्हें मालूम है ना!यह मैंने सिर्फ तुम्हारे लिए लिखा है "जान"।
उसकी पोस्ट पर लड़कियों के कमेंट्स देख जाने क्यों सुनंदा के मन में एक जलन सी उठी।
फोन रखकर वह वापस वार्डरोब की तरफ मुडी और गुलाबी शर्ट निकाल ली।
चेंज करके एक बार फिर खुद को देखा और अपने बैग को उठाकर वह बाहर निकल गई।
"माँ मैं जा रही हूं।"सुनंदा ने कहा।
"अरे शर्ट चेंज कर ली!क्यों?"माँ ने कहा।
"वो बस ब्लैक के साथ पिंक अच्छा लगता है ना!इसलिए ही।"नजरों को चुराते हुए उसनें कहा और गेट से बाहर आ गई।
बस में बैठते ही आदतन फेसबुक को खोला।शेखर के स्टेट्स पर आए कमेंट्स पढ़ती रही।
पता नहीं क्यों वह आज कुछ अलग ही महसूस कर रही थी एक अजीब सी चिढचिढाहट।
शेखर की लड़कियों के साथ चुहल वह बर्दाश्त नही कर पा रही थी लेकिन क्यों?
"पागल है तू सुनंदा।क्यों ऐसे जल रही है! तू है कौन शेखर की जिंदगी में?"उसने खुद से सवाल किया।
खिड़की के बाहर सड़क पर दौड़ती गाडियों को देखती रही।
एक सेल्फी लेकर आँखों को क्राप कर प्रोफाइल पिक्चर सेट की और अपलोड कर दी।
फोन बंद कर बैग में डाल दिया।उसका स्टॉप आ चुका था वह उतर कर तेजी से ऑफिस की ओर बढ गई।
आज उसका दूसरा दिन था।स्टॉफ के साथ थोडी हाय हैलो हुई और वह अपने टेबल की तरफ चली गयी।
सुनंदा ने शेखर के केबिन की ओर देखा।
वह अपने लैपटॉप को खोलकर काम करने लगी।बीच बीच में उसकी निगाहें शेखर के केबिन की ओर उठ जाती।
दो घंटे हो चुके थे उसे ऑफिस आए लेकिन बॉस ने उसे अब तक नहीं बुलाया था।
लंच का समय होने वाला था लेकिन अब तक वह शेखर को नहीं देख पाई।
जाने क्यों यह इंतजार उसे परेशान कर रहा था।
उसने फिर से फोन निकाला और फेसबुक ऑन किया।
अपनी प्रोफाइल पिक्चर पर आए नोटिफिकेशन देखने लगी।एक कमेंट पर उसकी निगाह टिक गई
यह आँखे जाने क्यों अपने करीब लगती है।
शेखर के कमेंट को पढकर उसके गाल कान तक लाल हो गए और उसने घबरा कर फोन बंद कर दिया।चोर निगाह से चारों तरफ देखा।
किसी की नजर उस पर नहीं थी।
तभी शेखर के केबिन का दरवाजा खोला और वह बाहर आया।उसके पीछे एक खूबसूरत सी लड़की थी।
देखकर कुछ चटका सा महसूस किया उसनें।तभी रूम से दो लोग और बाहर आए।वह चारों कुछ देर कुछ डिस्कस करते रहे फिर हाथ मिलाकर चले गए।
शेखर वापस अपने केबिन में लौट गया।
सुनंदा ऐसे ही देखती रही।
"मैम!बॉस ने कहा है कि रिपोर्ट लेकर लंच के बाद उनके केबिन में आए।"ऑफिस के चपरासी ने आकर कहा।
उसनें सहमति से सर हिलाया और कैफेटेरिया की तरह चली गयी।
कॉफी पीते हुए वह अपने अतीत की ओर मुड़ चली।
……….।।।…...
"तुम्हारी आँखें कितनी खूबसूरत हैं सुनंदा!"उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में लेकर विवेक ने कहा।
"झूठे!"विवेक को पीछे थकेलते हुए सुनंदा ने कहा और थोडी दूर जाकर खडी हो गई।
"झूठा न कहो,करीब तो आओ..जानती हो ना तुम्हारे बिना रह नही सकता।"विवेक ने कहा।
"बातें बनाना कोई तुम से सीखे।नहीं आती पास जाओ।"चिढा़ते हुए वह एक ओर चल पड़ी।
"न आओ...मैं भी चला जाऊंगा हमेशा के लिए….।"वह चिल्लाया।
"जाओ...कौन रोकता है।"अंगूठा दिखाकर सुनंदा ने कहा।
"मैं सच में चला जाऊंगा….इस दुनिया से ही।"विवेक ने कहा और पीठ फेर ली।
"विवेक!!!तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा कहने की?तुम समझते क्या हो खुद को!!"विवेक के करीब आकर सुनंदा ने उसकी पीठ पर एक मुक्का मारते हुए चिल्ला कर कहा।
"तो सताती क्यों हो मुझे?"विवेक ने उसकी ढोड़ी को छूकर कहा।
"कहाँ सताती हूँ!मैं तो कब से तुम्हारी हो जाना चाहती हूँ।"सुनंदा ने उसके सीने में मुँह छिपाकर कहा।
विवेक ने उसके होठों पर होंठ रख दिए।उसके जिस्म में एक तरंग सी उठ गई।वह कब उसके साथ उस कमरें में आ गई उसे पता नहीं चला।कब सारी सीमाओं को पार कर लिया पता नहीं चला।
उसके शरीर पर ऊंगलियों नचाता विवेक उत्तेजना को बढ़ा रहा था।
सुनंदा के जिस्म से कपड़े उतारता विवेक उसे लगातार चूम रहा था और वह हो गया जो एक आम लड़की के लिए अप्रत्याशित था।
जिस्मों का ज्वर उतरने के बाद सुनंदा को अपनी स्थिति का अंदाजा हुआ।वह सिसक कर रोने लगी।
"क्यों रो रही हो सुनंदा?हमने कोई पाप नहीं किया।हम प्यार करते हैं एक दूसरे से।"विवेक ने उसे समझाते हुए कहा।
"नहीं विवेक… शादी से पहले यह करना पाप है।मैं माँ को क्या मुँह दिखाऊंगी।"चेहरे को ढंक कर वह रोने लगी।
"यदि हमारे प्यार की पवित्रता के लिए शादी जरूरी है तो मैं कल ही माँ पापा के साथ तुम्हारे घर आऊंगा।तुम रोओ मत।"विवेक ने उसके आँखों के पानी को साफ करके कहा।
"तुम सच कह रहे हो?"
"हाँ सच कह रहा हूँ।"विवेक ने जवाब दिया।
…….
"मैडम कॉफी!"
आवाज सुन सुनंदा वर्तमान में लौट आई।उसकी आँखों में पानी था।उसे साफ कर वह चुपचाप कॉफी पीने लगी।
कुछ देर बाद वह शेखर के केबिन में थी।शेखर पीठ किए फोन पर किसी से बात कर रहा था।
वह चुपचाप खड़ी रही।
शेखर वापस मुड़ता है।सुनंदा को गुलाबी शर्ट में देखकर चौंक जाता है।वह बेहद खूबसूरत लग रही थी लेकिन उसकी आँखें नम लग रही थी।
"आर यू ओके!"शेखर ने सुनंदा के करीब आकर पूछा।
"यस...यस सर….रिपोर्ट.. रिपोर्ट तैयार है सर।"वह हड़बड़ाते हुए बोली।
"रिलेक्स.. रिलेक्स.. प्लीज सीट..।आपको भी गुलाबी रंग पसंद है सुनंदा?"
"वो ..जी..जी।"अचानक इस सवाल से वह अचकचा गई।
दिल की धड़कन तेज हो गई।फाइल शेखर को पकड़ा वह नजरों को चुराने लगी।शेखर फाइल को देखने लगा।
सुनंदा को लग रहा था कि जैसे शेखर उसे पहचान गया है।उसके हाथ सुन्न होने लगे।
"पर्फेक्ट… पहला काम ही इतना अच्छा किया है तो आगे तो आप कमाल करेंगी!"शेखर ने तारीफ करते हुए कहा।
"थैंक्यू सो मच सर..थैंक्यू..।"इतना कह सुनंदा उठ कर चलने लगी।
"रोकिए…कहाँ जा रही हैं?अभी मेरी बात खत्म नहीं हुई।"शेखर ने सुनंदा को टोकते हुए कहा।
डर कर सुनंदा वहीं जम जाती है।
"स..सॉरी सर।"
"यह प्लीज ,सॉरी,थैंक्यू.. संभाल कर खर्च किया करो।मुझे कुछ जानना है...।आप लिखती भी हैं?"
"हाँ..नहीं.. नहीं सर..आप क्यों पूछ रहे हैं?"घबरा कर सुनंदा ने पूछा।
"मेरी फेवरेट राइटर से मिलती हैं आपकी आँखें।खैर...आप जा सकती हैं।"इतना कहकर शेखर ने चेयर घुमा ली।
सुनंदा दो पल जम सी गई।उसके होंठों पर मुस्कान छा गई जिसे शेखर ने वॉल पर लगे ग्लास में देख लिया।वह वापस मुड़ जाती है।शेखर पलटकर उसकी ओर देखने लगता है।
सुनंदा अपनी टेबल पर जाकर टीशू से अपने चेहरे पर आए पसीने को साफ करती है व वापस काम में लग जाती है।
---//----
बिस्तर पर पड़ी सुनंदा करवटें बदलती रहती है।उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी।रह रह कर शेखर की बात उसके कानों में सुनाई दे रही थी…"मेरी फेवरेट राइटर.."
वह खिड़की के निकट खड़ी हो कर आसमान में झांकते चाँद को निहारने लगती है।
विवेक उसे चाँद कहता था… विवेक का ख्याल आते ही फिर से मन कसैला हो जाता है।
अतीत फिर उसके दिल पर जमे खुरंड को उखाड़ने लगता है।
…..
बेहद खुश थी वो।विवेक अपने परिवार के साथ उसका हाथ मांगने आ रहा था।
माँ सुबह से रसोई में जमी हुई थी।आज ही सारे पकवान बना देने वाली थी माँ।
बीच बीच में उसे आवाज मारकर तैयार होने के लिए कह देती।
ठीक समय पर वह लोग आ गए।
सुनंदा ने उन्हें नमस्ते कर घर में सम्मान से बिठाया और माँ को आवाज लगाई।
सुनंदा की माँ रसोई से निकल कर उनके सामने आ खड़ी हुई।
विवेक के पिता सुनंदा की माँ को देखकर चौंक गए और बोले-
"आप रेखा मलहोत्रा है न!"
"जी..जी..।"शंकित सी रेखा विवेक के पिता को ध्यान से देखने लगी।
"माफ कीजिएगा, आप मेरा नाम कैसे?"अधूरी छोड़ दी बात माँ ने।
"आपको कौन नही जानता।बाइस साल पहले एक ही तो लड़की ने वह कारनामा किया था जिसे पूरे शहर ने आज भी याद रखा हुआ है।"व्यंग्य से विवेक के पिता ने कहा।
"मैं समझी नही अंकलजी!"सुनंदा ने उत्सुकता से पूछा।
"हाँ पापा, बताइए न ऐसा क्या किया था आंटीजी ने जिससे वह प्रसिद्ध हो गई?"विवेक भी बोला।
"प्रसिद्ध नही मशहूर बोलो बेटा।यह महान महिला कुवांरे पन में ही माँ बन गई थी.. बिनब्याही माँ बनी थी यह औरत.. और उसकी नाजायज औलाद से तुम शादी करना चाहते हो?"वह जोर से बोला।
सुनंदा यह सुनकर सन्न रह जाती है।उसकी मां पत्थर बनी वहीं खड़ी रहती है।
"यह क्या सुन रहा हूँ मैं सुनंदा!तुमने इतनी बड़ी बात छिपाई मुझसे!!तुम नाजायज पैदाइश हो?तभी तुम कल मेरे साथ...।"विवेक ने सुनंदा को व्यंग्य से कहा।
सुनंदा उसके मुँह से सुनकर आवाक रह जाती है।
"चलिए माँ पापा… मुझसे गलती हो गई थी.।"विवेक ने कहा।
तभी एक तेज चाँटा उसके गाल पर पड़ा।सुनंदा ने उसका कॉलर पकड़ लिया और बोली,"तू क्या जायेगा मैं तुझे निकालती हूँ कुत्ते..अपने घर से अपनी जिंदगी से..निकल यहाँ से।"सुनंदा ने दरवाजे की ओर धक्का देकर कहा।
"हुंउ… ऐसे ही लड़के फा़सती होंगी माँ बेटी।"अब तक चुप बैठी विवेक की माँ भी बोल पड़ी।
वह लोग चले गए लेकिन रह गए दो बेजान जिस्म।सुनंदा ने माँ को देखा वह चुपचाप वैसे ही खड़ी थी।सुनंदा उन्हें हिलाने लगी।
"माँ..माँ..कुछ नहीं हुआ.. माँ बोलो कुछ।"
"सुनंदा.. तू नाजायज नहीं है.. हमने शादी की थी..तेरे पिता फौज में शहीद… बस घर में किसी को नहीं बता पाए हम..तू नाजायज नहीं है नहीं है..।"रेखा फफक कर रोने लगती है।
"हाँ माँ...तुम परेशान न हो….परेशान न हो।"
उस घटना के बाद सुनंदा ने वह शहर और नौकरी दोनों को छोड़ दिया और मुम्बई आकर रहने लगी।कई महीनों तक खुद को संभालने व माँ को नार्मल करने में लग गए।
वह तो भूल ही गई थी कि वह भी हँसती है।उस दिन सोशल मीडिया पर शेखर से मुलाकात न होती तो शायद वह अब तक लगभग खत्म हो गई होती।
शेखर का जिक्र आते ही उसका मन फिर से खिल उठता है।वह वापस बिस्तर पर लेट जाती है और फोन उठाकर फेसबुक ओपन करती है।
शेखर की पोस्ट सामने थी..
"पहचान गया हूँ तेरी खूशबू मैं
तू आज फिर मेरे करीब से गुजरी थी…
इन पंक्तियों को पढकर उसके दिल में कुछ कुछ होने लगता है।वह बार-बार उसे पढ़ती है और एक कविता लिखकर पोस्ट कर देती है।
शेखर का पहला कमेंट पा वह झूम उठती है जी करता है कि कह दे मैं ही हूँ आपकी फेवरेट राइटर।
परंतु अपने दिल पर काबू करके फोन बंद करके सो जाती है।
--------------
समय बीतता रहता है।सुनंदा की आँखों की लुक्का छिप्पी शेखर से बच नहीं पाती।वह उसे पहचान जाता है लेकिन जताता नही।
मैसेंजर चैटिंग में दोनों की दोस्ती बढ रही थी।दोनों एक दूसरे को जानते थे लेकिन जताते नही थे।
सुनंदा खुश रहने लगी तो उसके चेहरे की रौनक वापस लौट आई।यह देख रेखा को खुशी तो थी लेकिन साथ ही एक डर भी सता रहा था कि कहीं दोबारा उसकी बेटी का दिल न टूट जाए।
वह अंदर अंदर तनाव का शिकार हो रही थी।
सुनंदा के नजदीक रहती व उसके मन को कुरेदने की कोशिश करती रहती।
इधर शेखर के मन में प्रेम का अंकुरण हो गया था।उसके मन में कुमुदिनी जैसे खिलने लगी।
मनमौजी शेखर अब बंधन चाहता था और चाहता था किसी का साथ।
नजरों में पलता प्यार एक दूसरे के करीब होकर भी दूर था।सुनंदा तो अपने अतीत की काली छाया के डर से शेखर के निकट न आना चाहती।
वह पूरी कोशिश कर रही थी कि उसकी जिंदगी यूँ ही चलती रहे आवरण से ढकी हुई।
और एक दिन…
"मिस सुनंदा आपको कल कंपनी मिटिंग के लिए मेरे साथ चलना होगा। घर में बता दें कि देर भी हो सकती है।"शेखर ने कहा।
"पर..पर सर..आउटडोर मीटिंग!!मैं?"
"हाँ आप..मेरी सेक्रेटरी आप ही हैं न!और आपका नाम सुनंदा है?"
शेखर ने इस अंदाज से कहा कि वह झेंप गई।
"ठीक है सर।"इतना कह वह रूम से निकल गई।
………
अगले दिन शाम चार बजे वह दोनों होटल सनसाइन के मीटिंग हॉल में थे।
सभी लोग वहाँ आ चुके थे।सुनंदा का ध्यान शेखर की तरफ था जो बाकी लोगों के साथ बातें कर रहा था।सुनंदा मीटिंग हॉल में मौजूद लोगों पर नजर डालने लगी तभी किसी की आँखों को अपनी ओर देख उसकी नजरें ठिठक गई।यह विवेक था।
सुनंदा के चेहरे पर घृणा तारी हो गई उसने अपना चेहरा घुमा लिया।अगले ही पल उसका दिल में एक डर उत्पन्न हो गया।डर अपने अतीत का सबके सामने आने का।डर विवेक के साथ बिताए उस पल के खुल जाने का।
वह शेखर के पीछे जाकर खड़ी हो गई और कुछ ज्यादा ही नजदीक आ गई।
सबके सामने उसे यूँ अपने बिल्कुल करीब देख शेखर को आश्चर्य होता है।लेकिन वह वैसे ही खड़ा रहता है।
मीटिंग का समय हो जाता है और सभी अपनी जगह ले लेते हैं।शेखर सुनंदा की बाएं हथेली को थपथपाता है और आँखों से रिलेक्स होने का इशारा करता है।सुनंदा हल्के से मुस्कुरा देती है।
विवेक की नजर सुनंदा के चेहरे पर ही टिकी थी।
वह उसे कुटिलता से देख रहा था।
अचानक यूँ विवेक को सामने पाकर सुनंदा के दिल पर लगा घाव रिसने लगा।वह अवसाद के दिन और माँ के दुखों से लड़ती सुनंदा आज नार्मल है तो सिर्फ शेखर की वजह से।
वह कनखियों से शेखर को देखती है।कितनी मासूमियत दिख रही थी उसके चेहरे पर।वह हौले से मुस्कुरा दी।
शेखर ने उसे अपनी ओर देखता देखकर आँखों से इशारा किया।
सुनंदा ने झेंप कर नजरें नीचे कर ली।
मीटिंग कुछ देर के लिए रुक गई।वह शेखर से इजाजत लेकर वॉशरूम की ओर चल देती है।
अंदर जाकर वह अपने चेहरे को ठीक करती है और बाहर निकलती है।
"हैलो.. जानेमन!क्या हाल हैं?"एक आवाज सुन कर उसके पाँव ठिठक गए।नजर उठाकर आवाज की दिशा में देखती है तो वहां विवेक खड़ा था।सुनंदा उसे देख घृणा के भाव ले आती है और तेजी से मीटिंग हॉल की ओर चल पड़ती है।
"इस शहर में तुम्हें देखकर अच्छा लगा।"वह पीछे से बोला और हँसने लगा।
सुनंदा के पैरों में झुरझुरी होने लगी।खुद को संभालती वह शेखर के बगल में धंस जाती है।शेखर महसूस करता है कि वह असहज है।
मीटिंग खत्म होते ही वह सुनंदा के साथ वापसी कर लेता है।
पूरे रास्ते सुनंदा गुमसुम रहती है।शेखर को समझ नहीं आता कि आखिर हुआ क्या।एक कैफेटेरिया के पास कार रूकवा वह सुनंदा को अंदर चलने के लिए कहता है।
सुनंदा बिना सवाल किए उसके पीछे चलती रहती है।
दोनों कैफेटेरिया में बने लॉन के एक कोने में चियर पर बैठ जाते हैं।
सुनंदा अब भी चुप थी।
"कुछ हुआ है मिस सुनंदा?आपकी तबीयत ठीक नहीं लग रही है।"शेखर ने कहा।
"मैं ठीक हूँ सर।"सपाट जवाब देकर वह अपने मनोभावों को समेटने की कोशिश करती है।
"मुझे नहीं बताना चाहती लेकिन उस शायर को तो बता दो जिसे अपने दिल का हर राज बताती हो!"
"स...सर..वो।"शेखर उसका सच जानता है यह जानकर सुनंदा आश्चर्यचकित हो जाती है।
"आप..जानते.. कैसे?"हकलाते हुए उसने कहा।
"जिससे प्यार करो उसकी खूशबू कभी छिप सकती है क्या?"शेखर के इतना कहते ही सुनंदा रोने लगती है।
उसे ऐसे रोता देख वह घबरा जाता है और चुप कराने का प्रयास करता है।
"क्या कर रही हो… तुम्हें मैं पसंद नहीं तो इंकार कर दो..लेकिन ऐसे रोकर मुझे लोगों से पिटवाने का काम न करो .।"
"नहीं वो..नहीं।"हकलाते हुए वह अपने आँसू साफ करने लगती है।
इतने में कॉफी आ जाती है।दोनों किसी तरह कॉफी निगल कर वापस कार में बैठ जाते हैं।शेखर उसे ड्रॉप करता है और आगे निकल जाता है।
वह शेखर की गाड़ी को नजरों से उझल होने तक देखती रहती है।कुछ देर वहीं खड़ी रहने के बाद घर की ओर चल देती है।
"क्या बात है सुनंदा!आज कुछ परेशान लग रही हो?"माँ ने पानी का गिलास उसके हाथ में पकडाते हुए कहा।
"कुछ नहीं माँ..थक गई हूँ।मैं सोने जा रही हूँ।
माँ को वहीं छोड़ वह कमरे में घुस गई।
माँ बेचैनी से उसके कमरे के बंद दरवाजे के पास ही बैठ गई।
---- -----/---
शॉवर के नीचे खड़े हो वह सिसकने लगती है।आज फिर उसे अपना जिस्म मैला नजर आने लगता है।विवेक के साथ उस दिन...।उसे लगता है जैसे विवेक अभी भी उसके जिस्म पर उंगली फिरा रहा है।वह पागलों की तरह अपने शरीर पर साबुन मलने लगती है और रोती जाती है।
साबुन उसके हाथ से फिसल कर गिर जाता है।
उसे एक झटका लगता है।आँखों के सामने शेखर का चेहरा दिखने लगता है।
मन में उठते झंझावात को कंट्रोल कर वह गीले शरीर पर गाउन डालकर बाहर निकल जाती है।एक नजर फोन पर डालती है लेकिन उठाती नहीं।कमरे में घुमने लगती है।
उसका हाथ बेड के साथ लगी टेबल पर पड़ता है और वहाँ रखी माँ की तस्वीर गिर जाती है।वह हड़बडा कर तस्वीर उठाती है और भाग कर दरवाजा खोलती है।
उसकी मां जमीन पर लेटी हुई थी।
"माँ...माँ!यहाँ क्यों लेटी हो?"आशंका से घबराती सुनंदा माँ को हिलाती है लेकिन माँ कोई प्रतिक्रिया नहीं देती।
सुनंदा चिल्लाने लगती है।
वह समझ नहीं पाती क्या करे।
अस्पताल फोन करने की कोशिश करती है लेकिन कोई फोन नही उठाता।
वह शेखर को फोन मिला देती है और रोते हुए सब बताती है।
कुछ ही देर में ऐंबुलेंस उसके घर के बाहर पहुंच जाती है।
शेखर उसे अस्पताल के बाहर ही मिलता है।
डॉक्टर सुनंदा की माँ को चेकअप के लिए अंदर ले जाते हैं।सुनंदा को गाउन में देख शेखर उसे अपनी जैकेट पहना देता है।
सुनंदा बाहर बैठकर रोने लगती है।शेखर उसे तसल्ली देता है।
थोड़ी देर में डॉक्टर बाहर निकलता है।उन्हें देख सुनंदा खड़ी हो जाती है और पूछती है-
"क्या हुआ माँ को डॉक्टर?"
"माइनर अटैक था।आप समय पर ले आए।अब वह खतरे से बाहर हैं।"डॉक्टर ने जवाब दिया।
"मैं माँ से मिल सकती हूं?"
"अभी बस उन्हें देख लीजिए।इंजेक्शन दिया गया है वे सो रही हैं।"इतना कहकर डॉक्टर वहाँ से चला जाता है।
सुनंदा भाग कर रूम में घुस जाती है।माँ को ऑक्सीजन लगी हुई थी और वह सो रही थी।उनके चेहरे पर एक तनाव दिख रहा था।
सुनंदा की आँखों से पानी गिरने लगता है माँ के हाथ को पकड़कर वह वहीं बैठ जाती है।
"मुझे माफ कर दो माँ..आज मैने आपको दुखी किया.. तभी तो आपकी तबीयत..।पर माँ आज वो फिर मिला था मैं डर गई थी… लेकिन वादा करती हूं अब नही डरूंगी और न रोउंगी.. ठीक हो जाओ माँ।"
"तुम अब भी रो ही रही हो!"रूमाल आगे बढ़ा शेखर ने कहा।
"माँ ठीक हो जाएंगी।खुद को सम्भालो।"वह उसके कंधे पर हाथ रख तसल्ली दे रहा था।
सुनंदा ने शेखर के हाथ को पकड़ अपना चेहरा उसकी हथेली पर टिका दिया और सिसकने लगी।
"सुनंदा मैं सब जानना चाहता हूँ यदि तुम नही बताओगी तब भी मैं जानना चाहूंगा।अपने दर्द को मुझसे बांट लो सुनंदा।"उसके निकट घुटनों के बल बैठ शेखर ने कहा।
"मेरा अतीत बहुत बुरा है सर...आप मुझसे नफरत करने लगोगे।"
"सर नही शेखर… नफरत या मोहब्बत।यह मेरी मर्जी है।तुम बस अपना दिल मुझे दे दो।ताकि पढ सकूं तुम्हारे दिल के दर्द को अपना बनाकर।"
सुनंदा खामोश हो जाती है और एकटक माँ को देखने लगती है।
"मेरी जिंदगी आम लड़कियों की तरह थी।मैं भी किसी से प्यार करती थी….।"सुनंदा अपनी कहानी शेखर को सुनाने लगती है।उसकी आँखों में लगातार पानी बहता रहता है।
शेखर उसकी बातें ध्यान से सुनता रहता है।
"और इस तरह वह कमीना मेरी जिंदगी को बर्बाद कर निकल गया.. लेकिन आज फिर मुझसे टकरा गया...।उसकी आँखों में आज मेरे लिए व्यंग्य था..गाली थी...।"वह फफकने लगती है।
शेखर उसे गले लगा लेता है और उसकी पीठ सहलाने लगता है।
अपने को कंट्रोल कर सुनंदा शेखर से अलग हो जाती है और थोड़ी दूर खड़ी हो जाती है।
"माँ की मोहब्बत उनके लिए कलंक बनी और मेरी गलती मेरा कलंक।"
अपने आँसू साफ कर वह शेखर के पास आकर हाथ जोड़ लेती है और कहती है-
"आप मेरा सच जान चुके हैं और मैं जानती हूँ आप भी मुझसे नफरत करेंगे।मैं आपका बेहद सम्मान करती हूं और प्यार भी...।"
"मैं चली जाऊंगी… यहाँ से बहुत दूर।लेकिन इस बार खुद को खत्म नहीं करूंगी।माँ के लिए जिंदा रहूंगी।"
"तुमने यह कैसे तय कर लिया कि मैं तुम्हें जाने दूंगा!तुमसे नफरत करूंगा!मैं तुमसे प्यार करता हूँ और शादी करना चाहता हूँ।"शेखर ने सुनंदा को पकड़कर कहा।
"लेकिन मेरा जिस्म...यह नापाक है… विवेक के साथ...मैं आपके लायक नहीं हूँ।"सुनंदा ने हाथ जोड़कर कहा।
"जिसकी आत्मा पाक हो उसका जिस्म नापाक नही होता।और जहाँ तक जिस्मानी ताल्लुकात की बात है।मेरे संबंध भी कई लड़कियों से रहे हैं लेकिन मोहब्बत तुमसे हुई है।अब तुम तय करो कि क्या मैं तुम्हारे लायक हूँ!"शेखर ने बाँहें फैलाकर कहा।
"शेखर…!"सुनंदा उसकी बाँहों में समा गई।
दोनों एक दूसरे को कस कर अपने में समेट रहे थे।
"उस काले अतीत को हमेशा के लिए भूल जाओ।सामने भी आए तो घृणा न करना।क्योंकि यह ईश्वर की मर्जी समझना।क्योंकि यदि ऐसा न होता तो तुम मुझे कैसे मिलती?"शेखर ने कहा तो सुनंदा मुस्कुरा पड़ी।उसने ईश्वर का धन्यवाद किया।
शीतल पवन बहने लगी और सुनंदा की जिंदगी का सावन आ गया।वह शेखर के कंधे को भिगोने लगी।
"सु...नंदा!"तभी माँ ने धीरे से आवाज लगाई।
दोनों हड़बडा कर अलग हो गए।वह भागकर माँ के पास गई।माँ के चेहरे पर मुस्कान थी और एक असीम शांति भी।
"माँ..आप ठीक हो?"
"हाँ...वह...कौन है?"माँ ने शेखर की तरफ इशारा करके कहा।
"माँ मैं शेखर हूँ..और अब से आपका बेटा भी यदि इजाजत हो तो।"सुनंदा के निकट आकर शेखर ने कहा।
सुनंदा की माँ ने उसे इशारे से पास बुलाया और उसके माथे को चूम लिया।
तीनों की आँखें नम हो गई।
लेखक दिव्या शर्मा – परिचय
नाम - दिव्या शर्मा
शिक्षा - स्नातक कला वर्ग में, स्नातकोत्तर समाजशास्त्र में, डिप्लोमा पर्यटन में।
पद - महासचिव हरियाणा, विश्व भाषा अकादमी, भारत।
सहसंपादक : युग-युगांतर ई पत्रिका (विश्व भाषा अकादमी, भारत, हरियाणा ईकाई)
सदस्य संपादन समिति किस्सा कोताह
साहित्यक परिचय :
नुक्कड़ नाट्य मंडल द्वारा विभिन्न लघुकथाओं की पूरी सीरीज का मंचन । नाट्य विद्यालय के छात्रों द्वारा प्रयागराज व विभिन्न क्षेत्रों में मंचन जिसे दैनिक जागरण, अमर उजाला व हिन्दूस्तान टाइम आदि राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने प्रमुखता से छापा।
कैंसर पर जागरूक करती लघुकथा "मर्कट_कर्कट" का रूपांतरण नशाखोर के रूप प्रयागराज के प्रतिष्ठित रंगशालाओं में मंचन।
"नुक्कड़ नाटक अभिनय संस्था प्रयागराज" के स्थापना दिवस पर मेरी पांच कहानियों को लेकर प्रस्तुत की गई नाट्य प्रस्तुति "आईना समाज का" कुंभ प्रयागराज के बाद एक बार फिर माघ मेला अरेल घाट संगम प्रयागराज में मंचित हुआ। उपरोक्त मंचन के बाद "रेड डॉग फिल्म स्टूडियो" एवं "संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार" के सहयोग से मेरी लिखी कहानी "शरण स्थली" एवं "दोहरा चरित्र" का फिल्म रूपांतरण किया जा रहा है जिसका निर्देशन भारत सरकार एवं यूपीएसआरएलएम विभाग की डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्देशन कर चुके युवा रंगकर्मी कृष्ण कुमार मौर्य करेंगे।(प्रपत्र संलग्न)
दैनिक भास्कर में साक्षात्कार प्रकाशित।
जुगरनॉट पर कहानी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान।
जुगरनॉट पर साक्षात्कार प्रकाशित।
स्टोरी मिरर में ऑर्थर ऑफ द वीक से सम्मानित।
स्टोरी मिरर द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में लघुकथा "खनक" को प्रथम स्थान।
समावर्तन पत्रिका के लघुकथा स्तंभ 'घरौंदा' में मेरी लघुकथाएं दिसंबर दो हजार उन्नीस के अंक में प्रकाशित हुई।
समावर्तन के महिला विशेषांक -2 में दो कथाओं का प्रकाशन।
मातृभारती द्वारा "स्वाभिमान" पर राष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता में 50 विजेताओं में स्थान।
100 से अधिक लघुकथाएं कई प्रतिष्ठित पत्र, पत्रिकाओं जैसे पडाव और पडताल, किस्सा कोताह, लघुकथा कलश, आधुनिक साहित्य, साहित्य कलश आदि में प्रकाशित।
प्रभात खबर, दैनिक सांध्य टाइम, दैनिक हरियाणा प्रदीप, सुरभि आदि पत्रों में लघुकथाओं व कविताओं का प्रकाशन।
बाल कथा, "बंटू_और_पेड़" पाठ्यक्रम में सम्मिलित।
बाल कविता 'रिश्तों_का_ संसार" पाठ्यक्रम में सम्मिलित।
नंदन के जुलाई 2020 अंक में बाल कथा "भागा राक्षस" प्रकाशित।
बालभारती के फरवरी 2021 के अंक में बालकथा चतुर लोमड़ी और कौवा 'प्रकाशित।
अयोध्या शोध संस्थान (संस्कृति विभाग,उत्तर प्रदेश)के सहयोग से
साहित्य संचय फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में आलेख वाचन के अवसर के साथ ही रामचरित मानस में राम के विविध रूप पुस्तक में शोध परक आलेख प्रकाशित।
सम्मान- किस्सा कोताह पत्रिका के वार्षिकोत्सव में बालकहानी के लिए 'मदनलाल अग्रवाल' सम्मान से सम्मानित।
हरिद्वार लिटरेचर फेस्टिवल में लघुकथा पर विचार के लिए आमंत्रित व सम्मानित।
दैनिक जागरण में साक्षात्कार प्रकाशित।
दिव्या शर्मा
गुरुग्राम हरियाणा
मोबाइल नंबर-7303113924
मेल आईडी- sharmawriterdivya@gmail.com
Comments