दुर्गम पर्वतीय गांव में अस्पताल की भव्य इमारत बनी थी। पोर्च से होते हुए आपातकालीन वार्ड तक एम्बुलेंस और कार अन्दर तक जा सकती थी। आगे एक खुला स्थान था, जिसे धूप, वर्षा और बर्फ से बचाने के लिए अस्थायी छत बना दी थी। प्रायः मरीजों के साथ आए परिजन यहीं बैठ कर प्रतीक्षा करते थे। परन्तु मरीजों और उनके परिजनों की इतनी भीड़ थी कि इस जनसमूह के बीच से गुज़र कर वार्ड तक जाना किसी दुर्भेद्य किले को पार करने के समान था।
मेडिसन जनरल वार्ड तीसरी मंजिल पर था। मरीजों की इतनी भीड कि सब को आसानी से बेड भी नहीं मिलता था। हालत यह थी कि वार्ड के साथ वाले बरामदे में अन्त तक बेड लगे हुए थे। कुछ मरीज तो कॉरिडोर में स्ट्रेचर पर ही उपचाराधीन थे। दयनीय स्थिति में एक मरीज तो कॉरीडोर में जमीन पर ही पड़ा हुआ था। उसके साथ आए व्यक्ति ने ग्लूकोज़ की बोतल पकड़ी हुई थी। पता नहीं कि उस मरीज तक सही मात्रा में ग्लूकोज़ पहुंच रहा था या नहीं। कुछ समय पहले तो अस्पताल में बहुत गंदगी रहती थी, परन्तु अब तो काफी सफाई थी।
जनरल वार्ड का कमरा काफी बड़ा था ।उसमें दस बेड लगे हुए थे। एक बैड पर दो मरीज थे। पूछने पर ज्ञात हुआ कि पहले मरीज को छुट्टी मिल जाएगी और यह बेड नए मरीज को मिला है। इसलिए वह पहले ही आकर बैठ गया है ताकि कोई अन्य मरीज उसके बेड पर न आ जाए। नम्बर तीन पर एक 40- 42 वर्ष का मरीज था। देखने में तो वह स्वस्थ लग रहा था, परन्तु न जाने उसे क्या बीमारी थी कि बस कुछ दिनों का ही मेहमान था। काफी समय से इसी बेड पर था। अपनी दिलचस्प बातों से पूरे वार्ड के मरीजों का दर्द हल्का करने की कोशिश करता रहता था। यह उसकी खुशकिस्मत ही थी कि उसके बेड के साथ एक छोटी सी खिड़की थी। वार्ड की नियमित दिनचर्या थी। सुबह आठ बजे नाश्ता और उसी समय बेड आदि ठीक कर धुली चादरें आदि बिछा दी जाती थीं। ग्यारह बजे डाक्टरों के राउंड, बारह बजे दोपहर का खाना, पांच बजे चाय और परिजनों और मित्रों से मिलने का समय। सुबह नौ से ग्यारह बजे के बीच का समय खाली रहता था।
नम्बर तीन का मरीज नाश्ता करने के बाद खिड़की के पास बैठ जाता और बाहर का दृश्य देखता रहता। वार्ड के अन्य मरीज उसकी ओर बड़ी उत्सुकता से देखते रहते कि शायद वह उन्हे भी कुछ बताएगा। वाकई तीन नम्बर वाला बड़े उत्साह से बाहर का दृश्य बताता जो कि एक धारावाहिक नाटक के समान लगता, क्योंकि वह रोज उसी दृश्य के साथ कोई नई बात बताता। रोज का दृश्य कुछ यूँ होता। नीचे घाटी में एक खूबसूरत कोठी है। उसके चारों ओर फूल लगे हुए हैं। अरे! आज तो सफेद गुलाब खिल रहा है। तभी पांच नम्बर का मरीज बोला -- इस मौसम में गुलाब?
नम्बर तीन ने उत्तर दिया-- हाँ, यहाँ और भी ऐसे पौधे हैं जो हमारे घरों में तो इस मौसम में सूख जाते हैं परन्तु इस कोठी में बिना मौसम के भी खिलते ही रहे हैं। । वार्ड के मरीजों में कोठी के फूलों को देखने की उत्सुकता जाग पड़ी। तभी नम्बर तीन एकदम खुशी से बोला -- अरे देखो, अन्दर से एक खूबसूरत लड़की बाहर आई है और खिले फूलों को देख मुस्कुरा रही है। उसने बहुत सुन्दर सफेद रंग की पोशाक पहनी है जो उसकी खूबसूरती को चार चांद लगा रही है।
तभी नम्बर छः का मरीज बोला -- क्या वह तुम्हारी खिड़की की ओर देखती है?
नम्बर तीन -- नहीं, अब तो वह माली से कुछ कह रही है। वैसे भी यह कोठी नीचे है, पता नहीं यह खिड़की वहां से दिखाई भी देती होगी या नहीं।
नम्बर छः -- अरे यार, कुछ इशारा करो न, ताकि उसकी नजर तुम्हारी ओर पड़े। हो सकता है कि फूलों के बहाने दूर से ही तुमसे बातें करे।
और तब जनरल वार्ड में हंसी की एक मीठी सी लहर गूँज गई। ऐसा लगा जैसे सब अपनी बीमारी भूल नम्बर तीन की बातों के रस में डूब गए हों।
ग्यारह बजने को थे और डाक्टरों के राउंड का समय हो चला था, अतः सभी अपने अपने बैड पर व्यवस्थित हो गए। तभी एक नर्स आई और सब के टेम्परेचर नोट कर सभी की फाइलें ठीक तरह रख दीं। कुछ ही देर में डाक्टर आए उनके साथ कुछ जूनियर डाक्टर भी थे। सभी मरीजों का चैक-अप किया और कहा, अभी आपको कुछ दिन और अस्पताल में ही रहना होगा। पूरी तरह ठीक होने पर ही छुट्टी मिलेगी। नम्बर तीन बेचैनी से अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था। तभी वरिष्ठ डाक्टर ने कहा -- कहिए जनाब , कैसा हाल है?
उसने धीरे से सिर हिलाया। शायद ठीक है कहा होगा या फिर भगवान भरोसे कहा होगा। उसे भी अपनी बीमारी की गम्भीरता का पता था। कुछ देर डाक्टर आपस में बात करते रहे फिर कहा – एक बार कल बारह बजे फिर से अल्ट्रा साउंड करवा लेते हैं। ठीक है?
तीन नम्बर ने हामी भरी लेकिन बोला कुछ नहीं।
सभी मरीज उसके स्वस्थ होने की शुभकामनाएं करने लगे। उसी के कारण सारे वार्ड का वातावरण खुशनुमा रहता था। रोज ही तीन नम्बर वाला वह मरीज नीचे घाटी वाली कोठी, उसके फूल, पौधों की देखभाल करता माली और उस खूबसूरत लड़की के बारे में कोई नई बात बताता। उसी के कारण खुशनुमा माहौल की वजह से सभी मरीज स्वस्थ हो रहे थे
अगले दिन सुबह से ही वर्षा हो रही थी। पांच नम्बर ने उसे याद दिलाया कि उसे बारह बजे अल्ट्रा साउंड के लिए जाना है। उसने हूँ कहा और नाश्ता करने के बाद अपनी खिडकी के पास आ गया। कुछ देर बाद बोला -- शायद वर्षा के कारण वह लड़की आई नहीं। कुछ देर इन्तजार करते हैं, शायद वर्षा बंद होने पर वह आ जाए।
यकायक वह हैरानी से बोला -- अरे, देखो वह पिंक रंग का छाता लेकर आई है। उसने खुद भी पिंक रंग की पौशाक पहनी हुई है। घुटनों से नीच तक यह चुन्नटदार ड्रैस बहुत सुन्दर है। देखो, शायद बादलों को देखते-देखते उसकी नजर खिड़की पर पड़ जाए। काफी देर से बादलों की ओर देख रही है।
तभी छः नम्बर बोला -- तुम कुछ इशारा करो न!
कोशिश करता हूँ, उसकी ओर हाथ हिलाता हूँ, शायद नजर पड़ जाए।
अब तो वार्ड के अन्य मरीज भी उत्सुकता से उसे देखने लगे कि अब आगे क्या होगा। सभी रोमांटिक मूड में लग रहे थे।
तभी वह बोला -- देखो मैं हाथ हिलाता हूँ, वह बादलों को ही देख रही है। हाँ! देखते-देखते उसकी नजर खिड़की पर पड गई है। वह हैरानी से इधर देख रही है। अब उसने भी हाथ हिलाया है और अब अन्दर चली गई है।
सभी प्रश्नवाचक नजरों से उसे देख रहे थे।
उसने कहा -- कोई बात नहीं, अब तो उसको खिड़की दिखाई दे गई है।
अगले दिन नाश्ता करने के बाद उत्सुकता से नम्बर तीन की ओर देख कर पांच नम्बर का मरीज बोला -- भाई, खिड़की खोल कर देखो न, क्या वह आई है?
सभी नम्बर तीन से आंखों देखा हाल सुनने के लिए बेसब्री से खिड़की की ओर देखने लगे। नम्बर तीन नीचे घाटी वाली कोठी में नए खिले फूल, उनके रँग और नाम बताने लगा। माली पौधों को पानी दे रहा है।
तभी नम्बर आठ बोला -- भाई, यह तो बताओ कि वह खूबसूरत लड़की आई या नहीं।
तीन ने सब के उत्साह पर पानी फेरते हुए कहा -- नहीं, अभी तो नहीं।
वार्ड में एकदम निस्तब्धता छा गई। नम्बर तीन भी अनमने भाव से चुप बैठा रहा। फिर बोला -- चलो एक गाना सुनाता हूँ।
उसने आंखें बन्द कर स्वर साधते हुए कुछ गुनगुनाया और गाना शुरू ही किया था कि अचानक बीच में ही गाना रोक कर बोला -- अरे देखो, वह आ गई है। उसके हाथ में एक किताब है। शायद पढ़ रही होगी, तभी बाहर आने में देर हो गई।
हाँ , ऐसा ही होगा -- नम्बर छः ने कहा।
क्या अब उसने खिड़की की ओर देखा?
नहीं अभी नहीं। वह माली को कुछ समझा रही है। फूलों के पास जाकर कुछ कह रही है।
अच्छा, तुम हाथ हिलाओ न, तब वह इधर देखेगी, नम्बर आठ ने सलाह दी
हाँ, कोशिश करता हूँ ।
जब वह इधर देखेगी तो तुम बहुत अच्छे से हाथ हिलाना, नम्बर पांच ने कहा। नहीं,नहीं, तुम रूमाल से इशारा करो , तब वह जरूर इधर देखेगी, नम्बर छः ने उत्सुकता से कहा।
अरे, उसे मेरा हाथ हिलाना दिख गया है। वह भी मेरी ओर देख कर हाथ हिला रही है।
अरे, यह क्या? उसने मेरी ओर देख कर फ्लाइंग किस दिया है।
क्या मैं भी उसे उत्तर दूँ? नम्बर तीन ने पूछा।
यार, मुझे भी दिखाओ न -- नम्बर पांच व्यग्र होकर बोला।
परन्तु खिड़की इतनी छोटी थी कि केवल एक व्यक्ति ही उसमें से झांक सकता था।
लो, वह तो अन्दर चली गई है, कह कर नम्बर तीन ने खिड़की ब॔द कर दी।
डाक्टरों के राउंड का समय हो रहा था। सभी अपने-अपने बैड पर व्यवस्थित हो गए।
जनरल वार्ड का कमरा अपने खुशनुमा माहौल के कारण अन्य वार्डों में चर्चा का विषय बना हुआ था। नम्बर तीन रोज ही उस खिड़की से बाहर देखते हुए कोई नई कहानी सुना देता। उसने यह भी बताया कि उस दिन के बाद वह लड़की फिर दिखाई नहीं दी। शायद कहीं चली गई होगी। ऐसे वातावरण में कुछ मरीज तो ठीक हो कर घर चले गए थे।
जाते हुए नौ नम्बर के मरीज ने कहा -- भाई,हम तुम्हें कभी नहीं भूलेंगे। तुम्हारी सकारात्मक सोच के कारण ही मैं जल्दी ठीक हो गया। भगवान तुम्हे भी जल्दी ठीक करे।
सभी लोग भावुक हो गए। और अचानक एक दिन शाम को चाय पीते हुए नम्बर तीन की तबीयत बिगड़ गई। देर रात तक उपचार चलता रहा। कभी कोई इंजैक्शन, कभी कोई अन्य दवा। डाक्टर, नर्सें सब बड़ी सतर्कता से उसके उपचार में लगे रहे। वरिष्ठ डाक्टर ने उसे आपरेशन थिएटर ले जाने की सलाह दी। स्ट्रेचर पर लिटाते हुए भी उसके चेहरे पर मुस्कान थी। उसने बहुत बेबसी की दृष्टि से अपने साथियों को देखा। सभी ने शीघ्र स्वस्थ होने की शुभकामनाएं दीं। सभी की आंखें नम थीं। मन ही मन उसके ठीक होने की प्रार्थना कर रहे थे। परन्तु उसे बचाया नहीं जा सका।
अगले दिन नम्बर तीन पर कोई अन्य मरीज आ गया । नौ बजे नम्बर चार पांच, छः, सात, आठ सभी आपस में फुसफुसाते लगे।आखिर पांच नम्बर ने उस नए मरीज से कहा -- भाई, यह खिड़की खोलो न! अभी डाक्टरों के आने में दो घंटे हैं। खिड़की खोल कर हमें बताओ नीचे घाटी वाली कोठी में क्या हो रहा है।
नए मरीज ने भी उत्सुकता से खिड़की खोली। काफी देर इंतजार करने के बाद नम्बर पांच ने कहा -- भाई, बताओ न, उस कोठी में क्या हो रहा है। बिस्तर पर पड़े-पड़े बोर हो रहे हैं। कुछ मन बहल जाएगा।
नया मरीज बोला -- कोठी, कैसी कोठी? यहाँ नीचे तो अस्पताल की बड़ी ऊंची सी दीवार है और उसके आगे कूड़े कचरे का ढेर पड़ा है। एक आदमी उसे इकट्ठा करके ट्रक में डाल रहा है । कह कर उसने खिड़की बंद कर दी।
सभी मरीज हतप्रभ रह गए। नम्बर तीन को याद कर सभी की आंखें भर आईं।
शायद यह कृतज्ञता के आंसू थे, उस सहृदय नम्बर तीन के प्रति! सबका दुख - दर्द, कष्ट दूर करने के लिए उसने वातावरण को सकारात्मक विचारों से खुशनुमा बनाए रखा था।अनायास ही उसकी आत्मा की शान्ति के लिए सभी के हाथ प्रार्थनाबद्ध हो गए ।
लेखक डॉ मनोरमा शर्मा – परिचय
नाम-- डॉ मनोरमा शर्मा
जन्मतिथि-- 27 मई, डलहौजी, हिमाचल प्रदेश
पिता का नाम-- इंजी श्री हंसराज शर्मा
माता का नाम-- श्रीमती विद्यावती शर्मा
पता--
स्थायी पता
डॉ मनोरमा शर्मा
फ्लैट नं 4, ब्लॉक 5 ए,
हाउसिंग बोर्ड कालोनी
संजौली, शिमला ,171006
पत्राचार का पता --
डॉ मनोरमा शर्मा
102-103 इंडस एम्पायर,
ई-8, एक्सटेंशन, भोपाल (मध्य प्रदेश)
462039
शिक्षा-- एम ए, पी एच डी,
संगीत विशारद, वाद्य विशारद, पी जी डी एड।
व्यवसाय-- प्रोफैसर ( सेवानिवृत्त),
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला
साहित्यिक विधा-- हिन्दी और अंग्रेज़ी में सृजनात्मक एवं मौलिक लेखन,
कविता,आलेख,लघुकथाएं, कहानी, पुस्तकें
प्रकाशित पुस्तकें-- 27
तीन काव्य संग्रह - 30
लगभग 20 सांझा काव्य संग्रहों में कविताएं प्रकाशित , 16 पुस्तकों में अध्याय प्रकाशित तथा 300 से अधिक स्वतन्त्र शोध आलेख राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
सम्मान एवं पुरस्कार--
मेरी पुस्तक "लोक मानस के सुरीले स्वर" को हिमाचल भाषा कला संस्कृति अकादमी का पुरस्कार प्राप्त।
- स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार तथा सम्मान प्राप्त लगभग 58।
उपलब्धियां--
भारत की संस्कृति एवं शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार हेतु तन्जानिया, इराक,आस्ट्रेलिया में सात वर्षों तक सेवाएं प्रदान कीं।
सम्पूर्ण भारत के विभिन्न प्रदेशों में रिसोर्स पर्सन के रूप में अनेक कार्य शालाओं एवं सेमिनारों में सहभागिता ।
विभिन्न विश्वविद्यालयों के एम फिल के 38 तथा पी एच डी के 42 शोध छात्रों का शोध निर्देशन किया ।
देश की विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक तथा सामाजिक संस्थाओं से सक्रिय रूप से सम्बद्ध ।
सम्पर्क-- मोबाइल नं
98165-34512
email-- manorma104@gmail.com
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