मेरी दादी को थोड़े-थोड़े दिन बाद अपने घर में लोगों, जिन्हें आप कवि, लेखक, साहित्यकार कहते है, को बुलाकर कविताएं पढ़वाना,उनकी काव्य गोष्ठियां, खातिर और सम्मान करना और कहानी पाठ करवाने की बुरी लत है । घर में ऐसा करने से उन्हें कोई मना नहीं करता। दादू बताते है, पिछले 30 से अधिक वर्षो से वे ऐसे आयोजन करती आ रही है । मैं भी 20 वर्ष की हो गयी हूँ और पिछले वर्ष से तो मैं इन सबकी साक्षी हूँ। एक जरुरी बात आपको कहनी होगी, मेरी दादी खुद बहुत अच्छी लेखिका है और बहुत सारे लोग उन्हें जानते हैं। इसलिए वे जब भी किसी को आमंत्रित करती हैं तो लेखक लोग उनके बुलावे का मान रखते ही हैं।
पिछले हफ्ते दादी ने बहुत ही उत्साह से मुझे बताया , इस बार विदेश से दो लेखक आ रहे हैं, हो सकता हैं मेरे घर भी आ जाये। फेसबुक के जरिये उनसे काफी बातचीत हुई हैं । अपने देश के लोग हैं । दादी बहुत उत्साहित लग रही थी। मैं उन्हें कुछ कहना चाहती थी पर मन में सोचती रह गई और कह नहीं पाई । दादी खुद लिखती हैं और हमारे घर आने वाली गोष्ठियों में देश के जाने माने साहित्यकार, लेखक, कवि, साहित्य को प्रेम, करने वाले राजनेता भी कई बार पधार चुके हैं पर दादी कभी इतनी उत्साहित नहीं हुई, इस बार क्यों ? खैर मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा। वह प्रतिदिन तैयारिओं में लग गयी। छत से लेकर, हर दिवार पर अपने हाथ से कभी झाड़ू से, कभी कपडे से दीवारों को साफ करने लगी । अपनी किताबों के रेक, उन्हें मिली बहुत सारी शीलडें साफ करने लगी। उन्हें हमेशा लगता है कि लोग उन्हें तंदरुस्त और स्वस्थ समझे, उनकी दुर्बलता कहीं प्रकट न हो जाये, मुझे लगता है ये भय ही उनके उत्साह का कारण बना रहता है ।
भारत में आने के बाद से, जगह जगह उस विदेशी लेखक मोहित का सम्मान हो रहा था। दादी सिर्फ एक बार उस लेखक से पिछले साल के पुस्तक मेले में मिली थी ।आज वह उसे मिलकर निमंत्रण देना चाहती थी। अपने घर से लगभग एक घंटे की दूरी पर होने वाले आयोजन में दादू-दादी दोनों मोहित को आमंत्रित करने गए मैं भी उनके साथ थी । वह लेखक सब मित्रो को मिल रहा था। दादी ने कल के लिए निमंत्रण दिया और 3 बजे हमारे घर उसका कहानी पाठ का समय तय हो गया ।
दादू, मैं और दादी हम कार्यक्रम समाप्ति से पहले घर के लिए निकल पड़े थे। रास्ते भर दादी सोचती रही कैसे होगा, क्या-क्या करना है।
अगले दिन सुबह दादी जब मंदिर गयी तो लौटने पर उनसे हांथो में फूल मालाओं का बैग था। बैग देखते ही मैंने पूछा था आप तो कभी फूलों की माला नहीं लाती, इस बार क्यों ? वह हंस पड़ी, कुछ कहाँ नहीं। रसोई में खुद ही अपने लिए चाय बनाई, दो बिस्कुट के साथ चाय पीकर वह बोली जरा मेरे साथ बाजार तक चलो, सुबह के 10 बजे थे मैंने पूछा दुकाने तो खुलने दो." वह मुस्कराई, वह गुस्से में बहुत कम आती हैं, उन्हें क्रोधी लोग बिलकुल पसंद नहीं। मैं चुपचाप उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गई ।उन्होंने चन्दन की दो बड़ी मालाएं खरीदी, दो खूबसूरत शाल लिए, मोतियों की मालाएं ली। थोड़ा आगे आने पर वे एक दुकान के सामने रुक गई। ये एक बेकरी की दुकान थी, ऊँची शानदार दुकान । दादी हर चीज का मुआयना करने लगी । आखिरी उन्होंने मसालेदार काजू का आर्डर दिया। ड्राई फ्रूट वाला नमकीन मिक्सचर लिया। सबसे सुंदर दिखने वाले स्वादिष्ट फ्रंटियर के बिस्कुट ख़रीदे। मैं चुपचाप उन्हें देख रही थी। वैसे तो हर बैठक की तयारी वे खुद करती हैं पर इस बार काजू, मिक्सचर भी। मैं चुप रही । वे रिटायर हैं और उन्हें पेंशन मिलती है, अपनी आय से अधिक पेंशन वे यूं ही खर्च करती हैं। इतने पर भी वे रुकी नहीं। मिठाइयों में उन्होंने छोटे गुलाब जामुन ख़रीदे। ढोकला, समोसे, कचौड़ी, मट्ठी का आर्डर वे पहले ही दे चुकी थी।
घर पहुंचकर वह खाने की तैयारी में लग गयी। मेरी माँ भी उनका पूरा साथ दे रही थी पर आज उनकी तबियत ख़राब थी । पिछले दो दिन से मां को लूस मोशन लगे हुए है। डॉक्टर कह रहा था ड्रिप लगवा लो पर दादी ने घर में ही सब अरेंज कर दिया, इलेक्ट्रॉल के कई पैकेट मंगवा दिए और माँ को कहा "कुछ नहीं होगा, मुझे तो अक्सर ऐसा होता रहता है। आज की बात है थोड़ा सहयोग दो।" माँ पूरा साथ दे रही थी परन्तु दादी को पता था माँ ज्यादा देर रसोई में खड़ी नहीं हो पायेगी। दादी ने सारा खाना रेस्तरां से मंगवाया, मिक्स वेजिटेबल, दाल मक्खनी, फ्रूट रायता, मिस्सी और सादी रोटी। मम्मी ने मटर-पनीर और वेज-पुलाव घर ही बना लिया। एक बजे सब आ गए और खाना शुरू हो गया। किसी को पता नहीं चलने दिया कि खाना बाहर से मंगवाया है। दादी सब का ध्यान रख लेती है, वह बीच-बीच में कहती रही "मेरी बहु बहुत अच्छा खाना बनाती है। उसे पिज्जा भी बहुत अच्छा बनाना आता है । " पता नहीं कोई उनकी सुन रहा था कि नहीं पर उन्होंने कई बार ये बात बोली। सबने खाने की जमकर तारीफ की और आये लेखक महोदय ने कहाँ " कहानी पाठ से पहले ही चाय हो जानी चाहिए। थोड़ा गला अच्छा महसूस करेगा।" उनके साथ ही लंदन से पधारी एक बहुत ही शालीन, सौम्य, राजनीतिज्ञ और लेखिका जीनत साहिबा भी थी उनके दिल्ली में रह रहे भाई-भाभी भी थे। जीनत जी ने कहा "मैं काफी लूंगी।" दादी ने फ़ौरन कहा , बहु कॉफ़ी बहुत अच्छी बनाती है। चाय -कॉफ़ी का दौर चल ही रहा था कि और लेखक कवि आने शुरू हो गए । मौसम थोड़ा ठंडा ही था, जनवरी का महीना, कोल्ड ड्रिंक छोटे-छोटे गिलास में डाले गए। पता नहीं कोई पियेगा के नहीं। दादी कहती "सब लोग चाय नहीं पीते, इसलिए कॉफ़ी, कोल्ड ड्रिंक सब रखने है।" बिसलेरी की छोटी पानी की बोतले भी मंगवाकर रख ली थी। साढ़े तीन बजे तो सबने कहानी पाठ शुरू करने के लिए कहा। दादी ने माइक संभाल लिया और आये सभी अथितियों का स्वागत किया । आये सब लेखकों का परिचय कराया गया मोहित और जीनत का फूलमाला, चन्दन की माला, मोतियों की माला, शाल, अभिनन्दन पत्र भेंट कर स्वागत किया गया। देश की प्रतिष्ठित पत्रिका के संपादक आशुतोष भी मुख्य अथिति के रूप में आये हुए थे उनका भी फूल माला, शाल मोतियों की माला भेंट कर स्वागत किया। घर आये मेहमानों को बहुत ही आदर-सत्कार देना चाहती थी उन्होंने अपने पोते राज को अपनी नई पेंटिंग पर उपस्थित मेहमानों के हस्ताक्षर करवाने के लिए आमंत्रित किया। मोहित और जीनत साहिबा और आशुतोष जी ने चित्र पर हस्ताक्षर किये। समय की गति को देख अब मोहित को कहानी पाठ के लिए निवेदन किया गया ।
कहानी शुरू हुई । बहुत ही सवेंदनशीलता और आकर्षक आवाज़ के साथ कहानी शुरू हुई। विषय कुछ खास नहीं था अस्पताल के एक कमरे में बीमार पति के साथ बिताये एक पत्नी के 15 दिन और बीमार पति की माँ की उपस्थिति का भरपूर चित्रण था कहानी में। कहानी पढ़ते हुए लेखक कभी सिसक रहा था, कभी हिचकियाँ ले रहा था, लग रहा था मानों रो रहा है, उसकी आंखे भी रुआंसी हो रही थी, कहानी पढ़ते हुये 10 मिनट हो गए थे कि दादी को मेरी माँ दिखी जो दो दिन से कॉफ़ी अस्वस्थ थी, वह खुद को रोक नहीं पायी और माँ के पास आकर उसे कुछ कहा और कहानी पाठ में उपस्थित एक लेखिका सरस्वती को नमस्तें कर ली। कहानी पाठ करने वाले लेखक मोहित ने अपना चश्मा गुस्से से उतार कर टेबल पर दे मारा और चीखते हुए बोला " WHAT THE HELL " हो गई कहानी" वह आगे कहानी नहीं पढ़ना चाहता था। दादी और हम सब हक्के-बक्के रह गए। दादी ने माफ़ी मांगी और कहा" जरुरी काम से मुझे उठना पड़ा, आप कहानी पढ़िए। खैर मोहित ने बहुत मुश्किल से खुद को शांत करने की कोशिश की अपने सर पर चार-पांच थपड लगाए और जब चश्मा पहनने लगे तो वह टूट चुका था, उसकी एक डंडी नदारद थी। लेखक उठा और अपने झोले से नया चश्मा निकाल कर कहानी पढ़ने लगा। जहाँ तक मुझे लगता है इस ख़राब नाटक के बाद किसी की रूचि कहानी सुनने में नहीं होगी परन्तु हम भारतीय मुखौटा लगाने में माहिर है, कहानी पाठ चलता रहा। कहानी के दौरान कई बार लेखक चीखा, रोया, जोर-जोर से बोलता रहा ताकि कहानी प्रभावशाली बने । कहानी तो प्रभावशाली थी ही लेकिन लेखक के कहानी वाचन की शैली ने उसे हास्यापद बना दिया था। यहाँ तो सब लिखने वाले ही कहानी सुन रहे थे।
कहानी ख़त्म हुई तो सबने कुछ न कुछ कहा । सबसे पहले दादी ने कहा "मै आपको बड़ी बहन होने के नाते एक सलाह देना चाहती हूँ , आप अपनी सेहत का ध्यान रखें। कहानी पढ़ते हुए इतने उतार-चढ़ाव आपको नुकसान पहुंचा सकते है। पाठक और प्रशंसा से बड़ी अपनी सेहत है उसे ध्यान में रखिये। "
मैँ देख रही थी दादी सीधे-सीधे बहुत कुछ कह सकती थी परन्तु सयंम से उन्होंने अपनी बात की और कहानी की प्रशंसा भी की। उपस्थित लेखकों ने भी दादी की बात से सहमति जताई और उनको क्रोध पर नियंत्रण करने की सलाह दी। एक से लेकर 15 तक सभी ने कहानी की प्रशंसा की।
जीनत साहिबा को जब सम्बोधन के लिए बुलाया गया तो उन्होंने "दादी को इस आयोजन की बधाई दी और उपस्थित अतिथियों को इस कहानी के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा ये कहानी मोहित जी की नहीं है, ये विषय मैंने ही इन्हें बताया था, कहानी का नायक मेरा भांजा है और नायिका मेरे भांजे की पत्नी। इस कहानी की माँ मेरी बहन है। जब मैंने ये घटना इन्हें सुनाई तो मोहित ने मुझसे ये कह दिया था आप इस विषय पर कहानी नहीं लिखोगी मैं लिखूंगा। मोहित ने बहुत ही खूबसूरती से इस विषय पर लिखा है। पात्रो के नाम बदले है। वास्तविक नाम आप सुनेंगे तो कहानी से तारतम्य बिठा नहीं पायेंगे।" वह कुछ सोचने लगी फिर उन्होंने वास्तविक पात्रों के नाम बताये, वे नाम मुसलमानी नाम थे और कहानी के नाम पंजाबी थे।
सबसे अंत में पत्रिका के संपादक और सवेंदनशील कवि, लेखक आशुतोष ने दादी का बहुत आभार किया और लेखक मोहित को कहानी पाठ और अभिनन्दन पर बधाई दी। दादी ने घर आये सभी अतिथियों को विदा किया लेकिन आठ दस लोग अभी बैठे हुए थे और फिर से चाय बन रही थी। वे लोग दादी का चेहरा देख रहे थे पर वे ऐसे शांत थी मानो कुछ हुआ ही न हो। सब लोग उनके बोलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। दादी सब की मन की बात शायद समझ गई थी, वे बोली "आज मेरी क्या सच में कोई गलती थी जो मोहित जी कहानी पाठ के दौरान क्रोधित हो गए।" वह सच में जानना चाहती थी। गोष्ठी के बाद रुके हुए पांच पुरुष और पांच महिलाएं थी उन्होंने दादी को कहा " आपकी कोई गलती नहीं थी। ये तो उस लेखक का क्रोध या उसका अहंकार था। भला उसके कहानी पाठ के दौरान क्या कोई अपनी जगह से उठ नहीं सकता। नौटंकी साला।" एक ने कहाँ। दूसरे ने कहाँ "कहानी भी कोई ख़ास नहीं थी।"
तीसरे ने कहाँ "कहानी सुनाने और कहानी पढ़ने में अंतर होता है। ये तो कहानी अभिनीत कर रहे थे या कहानी का मंचन। हर पात्र के अनुसार कभी सिसकिया, कभी रोने का अभिनय, कभी चीखना, कभी हिचकियाँ। बहुत बुरा कथा वाचन था।"
महिलाएं तो बहुत आहत थी । एक तो होस्ट दूसरी महिला, तीसरा जिसके घर में वह कहानी पाठ कर रहा है, उसके साथ ही ऐसी बदसलूकी, गुस्से से अपना चश्मा तोड़ लेना। पुस्तक मेले में कैसे लड़कियों के साथ दांत फाड़कर बतिया रहा था, साला फरेबी मक्कार।" एक ने कहाँ।
मै सोच रही थी, ये कैसे लेखक है जो उसके सामने तो उसकी प्रशंसा में बिछे जा रहे थे और उसके जाते ही सब….. । मैं समझ नहीं पा रही थी यह मोहित का अहंकार था या उपस्थित लेखकों की ईर्ष्या, दूसरे के व्यव्हार को समझना बहुत कठिन है। दादी को उस रात हमारे घर में सबने डांटा " कौन हैं ये मोहित , क्यों बुलाया उसे।"
दादी सबको समझा रही थी "मैंने कहाँ पढ़ा है इसे, मैं तो कुछ नहीं जानती । फेसबुक में कुछ लेखकों ने हुड़दंग मचा रखा है। हर रोज उछल कूद, लगता है बस ये ही महान लेखक है । मैं भी उसके झांसे में आ गयी। सोचा था की मोहित की कहानी के साथ मैं भी अपनी कहानी पढूंगी , पर मोहित ने आते ही मना कर दिया था ये कहकर कि आज तो मैं ही अकेला कहानी पाठ करूँगा, पर इसने तो माहौल ही ख़राब कर दिया। "
अब अंत मेँ बारी थी मेरे पापा की, वह आज तक कभी दादी के सामने नहीं बोले थे। आज वह भी दादी से गुस्से में पूछ रहे थे "आपने उस मोहित के साथ फोटो खिंचवाने के लिए मुझे क्यों कहा।"
दादी ने जवाब दिया था " जो घर आते है, उन्हें अच्छा लगता है और उनका सम्मान किया जाना चाहिए।"
आपको पता है मोहित ने अपने पास बुलाते हुए मुझे क्या कहा " Let your mother be happy." बतमीज़ लेखक, ऐसे आदमी को तो....अपने दांत पीसते पापा बाहर चले गए। .................
पापा बहार चले गए तो दादी चेहरा फक्क। "दिखने में तो मोहित ऐसा नहीं लगता , आज क्या हो गया उसे। दादी को पता ही नहीं चल पाया उसे क्या हो गया था। अगली सुबह दादी की बहन का फ़ोन आया, वह भी कल की गोष्टी में शामिल थी, उसने उस लेखक के व्यव्हार की जी भरकर भर्त्सना की । फिर उसके बाद एक, दो, तीन, चार कई लेखकों के फ़ोन आते रहे, दादी को सब सांत्वना दे रहे थे और कह रहे थे अच्छा हुआ, आपने क्रोध नहीं किया।"
छोटी दादी ने तो यहाँ तक कह दिया था "मेरे घर कोई ऐसा करता तो मैं कह देती "कहानी गई भाड़ में, Get out from my home."
पत्रिका के संपादक श्री आशुतोष का फ़ोन आया, दादी की बात मैं सुन पा रही थी पर वे क्या कह रहे थे मेँ सुन नहीं पाई, आखिर मैंने पूछा "क्या कह रहे थे आशुतोष ।"
"कल के किये दुःख जाहिर कर रह रहे थे। जो बाते उन्होंने कही है वे मार्गदर्शन करने वाली है। कई बार उम्र में छोटे भी बड़ी-बड़ी बातें कर हमें प्रकाशित कर जाते है। " दादी ने मुझे कुछ नहीं बताया पर 20-25 मिनट होने वाली बात में बहुत कुछ ऐसा था जो दादी ने छिपा लिया था।
अभी मैं बात ही कर रही थी कि विदेशी लेखक मोहित जी का फ़ोन आ गया । कल के व्यव्हार के लिए क्षमा तो वे कल ही मांग गए थे । आज वो दादी की किसी कहानी पर अपनी राय बता रहे थे। कहानी को ऐसे लिखे, कहानी को ऐसे पढ़ो ....। दादी को बहुत लोगों ने पढ़ा -सुना है । प्रसाद विमल ने तो दादी को कहा था" तुम जैसा लिखती हो वैसा ही लिखती रहो। "
मैने दादी को इतना कहते सुना था "आपका शक्रिया आप मेरे घर कहानी पढ़ने आये, अब मेरे पास आपकी दो-चीज़े हमेशा सुरक्षित रहेगी एक तो आपका दिया परफ्यूम और दूसरा आपकी ऐनक की टूटी हुई डंडी। जो अगले दिन कमरे की सफाई में मुझे मिल गयी ।
मुझे दादी की कविता की ये पंक्तियां अक्सर याद आ जाती हैं और बहुत अच्छी लगती हैं , शायद इन पंक्तियों में दादी, दूसरों को दुख देने वाले, बुरी सोच रखने वाले ही अधिक दुख में रहते हैं, को प्रकट कर रही हैं, "पांडव बनवास में इतने दुखी नहीं रहे, जितना दुर्योधन अपने महलों में रहा।" मैंने देखा दादी शांत चित्त होकर कुछ लिखने बैठ गई थी पर मैं लेखकों और साहित्य प्रेमियों के कल के अभिनीत मुखोटों को देख कर बहुत हैरान हूँ।
श्रीमती सविता चड्ढा : स॔क्षिप्त परिचय :
28 अगस्त 1953 को पानीपत में जन्मी श्रीमती सविता चडढा साहित्य जगत का एक जाना पहचाना नाम है जिन्होंने उच्च शिक्षा (एम.ए .हिंदी, एम. ए. अंग्रेजी, विज्ञापन जनसंपर्क और पत्रकारिता में डिप्लोमा, 2 वर्षीय कमर्शियल प्रैक्टिस डिप्लोमा ) प्राप्त की है और विभिन्न विषयों पर 1981 से लेखन कार्य कर अपनी विशिष्ट पहचान बना चुकी हैं। इनकी 47 से भी अधिक पुस्तकें जिनमें 15 कहानी संग्रह, 10 लेख संग्रह, 2 उपन्यास, 9 काव्य संग्रह तथा 11 पत्रकारिता पर पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।
आपकी लिखित तीन कहानियों पर टेलीफिल्म निर्माण हो चुका है और कई कहानियों पर नाटक मंचन हो चुका है। आप 60 से अधिक कहानियां आकाशवाणी पर पढ़ चुके हैं , वहीं कक्षा 6 ,7 ,8 के पाठ्यक्रम में भी आपकी तीन बाल कहानियों को शामिल किया गया है । आपकी कहानियां अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू भाषा में अनुवादित है ।
आपकी पत्रकारिता की तीन पुस्तकों को दिल्ली विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय और देश के कई पत्रकारिता विश्वविद्यालयों में सहायक ग्रंथों के रूप में शामिल किया गया है और पढ़ाया जा रहा है । आपकी कहानियों पर विश्वविद्यालयों में शोध हो चुका है और हो भी रहा है। आपके व्यक्तित्व और कृतित्व पर कई पुस्तकें और पत्रिकाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। लोक सभा, राज्य सभा टीवी और दूरदर्शन पर “ पत्रिका कार्यक्रम “ में और कई समाचारपत्रों में आपके इंटरव्यू प्रकाशित हो चुके हैं।
(साहित्य सृजन के अलावा आपने देश के प्रतिष्ठित बैंक,पंजाब नेशनल बैंक के राजभाषा विभाग में वरिष्ठ प्रबंधक के रूप में कार्य किया है और दिल्ली बैंक नगर राजभाभाषा कार्यान्वयन समिति के माध्यम हिंदी के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसके लिए आपको बैंक ने समय समय पर सम्मानित किया हैं। केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद् में साहित्य मंत्री के रूप में आपकी सेवाएं और बैंक और देश की कई पत्रिकाओं के संपादन कर अपने हिंदी भाषा की अप्रतिम सेवा भी की है।)
साहित्यिक यात्राएं; देश में आपकी सहभागिता सराहनीय है ही, यदि विदेशों की बात की जाये तो न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी, अमेरिका, पेरिस, दुबई, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी ,ताशकंद, हॉलैंड, नेपाल जैसे कई देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं और लगातार साहित्य सृजन में लगी हुई हैं।
सम्मान: हिंदी अकादमी, दिल्ली का 1987 में साहित्यिक कृति पुरस्कार, हरियाणा साहित्य अकादमी का हरियाणा गौरव सम्मान, वूमेन केसरी, साहित्य गौरव, राष्ट्र रत्न , साहित्य सुधाकर , साहित्य शिखर सम्मान, दिल्ली गौरव के अलावा 50 से भी अधिक संस्थाओं ने आप को सम्मानित किया है।
संपर्क : सविता चडढा
899,रानी बाग, Delhi 110034
savitawriter@gmail.com
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