मैं इस समय से ऊब गया हूँ।
यह समय जो बीतता ही नहीं है,
जो छलछलाने के सिवाय
कोई मनोवेग नहीं जानता,
जो उल्टे पैरों लौट नहीं सकता
जिसे मैं तोड़ नहीं पाता
जिसे मैं छोड़ नहीं पाता
और न छुपा पाता हूँ।
यह उड़ भी तो नहीं सकता
मेरे विचारों संग।
एक ही नाप में चलता है
यह समय नियत, उदास, तटस्थ।
कठिन है कृत्रिम मेधा संग दौड़ते,
इस मंथर समय के साथ जीना।
मुझे नया समय चाहिए।
लेखक परिचय - धर्मपाल महेंद्र जैन
प्रकाशन : “गणतंत्र के तोते”, “चयनित व्यंग्य रचनाएँ”, “डॉलर का नोट”, “भीड़ और भेड़िए”, “इमोजी की मौज में” “दिमाग वालो सावधान” एवं “सर क्यों दाँत फाड़ रहा है?” (7 व्यंग्य संकलन) एवं “अधलिखे पन्ने”, “कुछ सम कुछ विषम”, “इस समय तक” (3 कविता संकलन) प्रकाशित। तीस से अधिक साझा संकलनों में सहभागिता।
स्तंभ लेखन : चाणक्य वार्ता (पाक्षिक), सेतु (मासिक), विश्वगाथा व विश्वा में स्तंभ लेखन।
नवनीत, वागर्थ, पाखी, पक्षधर, पहल, व्यंग्य यात्रा, लहक आदि में रचनाएँ प्रकाशित।
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