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ई-कल्पना

ई-कल्पना कहानी का चौथा अंक अब प्रस्तुत है



आज से 20-25 साल पहले हर माँ-बाप अपने होनहार बेटे को बिल गेट्स की तरह सफल देखना चाहते थे.

फिर स्टीव जॉब्स बहुतों का रोल मॉडल रहा, उसकी बायो की तीस लाख क़ॉपीज़ यूं ही बिक गईं. पिछले साल प्रकाशित होने के पहले हफ्ते में ही इलौन मस्क की बायो की एक लाख कापियाँ बिकीं ...


आज अनेकों होनहार युवकों की तलाश उस दुर्लभ व संकीर्ण राह की है, जो बस कुछेक को ही मिल पाती है, लेकिन उन्हें अरबपति बना डालती है. यह राह कितनी भी अप्राप्य हो, कठिन हो, शायद उतनी सार्थक भी न हो, लेकिन वे जुटे रहते हैं. 


उफ़ ... मैं इस समय से ऊब गई हूं ... मुझे नया समय चाहिये ... (कौन था? ये किसने कहा था?)


कई बार उन बेचारे बचे-खुचे अरब लोगों में जो वैसे होनहार नहीं हैं और उस तरह के सपने भी नहीं देखते, कुछ ऐसे भी होते हैं, जो जीवन का असली रंग बिना कोई सीढ़ी चढ़े देख पाते हैं. 


संजय कुमार सिंह जी की लिखी कहानी साइकिल, सुग्गा, मैना, गाय, बकरी और भेड़ के भुवेसर भैया इस तरह के किरदार हैं.


तो, कहानी पढ़िये, और बताइये.


इस एक कहानी के अलावा, एक बार फिर एक कविता भी पेश कर रहे हैं. धर्मपाल जी की नया पराग भी बहुत बढ़िया है. 

मुलाहिज़ा फरमाइये. 


मुक्ता सिंह-ज़ौक्की

सम्पादक, ई-कल्पना




इस अंक की प्रतियाँ गूगल प्ले या ऐमेज़ौन से खरीदी जा सकती हैं


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