अट्ठारह दिन का युद्ध
मैं यौद्धा न था
न अर्जुन, न कर्ण, न भीष्म
आक्रमणकारी भी नहीं था सामने
न था युद्ध का मैदान
न थी सेना, शस्त्रास्त्र
फिर भी शवों के अंबार लगते रहे।
सच ही कहा है पुराणों में
पृथ्वी मृत्युलोक है।
क्या ऐसा पहले कभी हुआ मायावी संग्राम!
सेनाएं अदृश्य
वार अदृश्य, संहार अदृश्य।
कोई खींच रहा विश्वास
कोई खींच रहा श्वास।
यह युद्ध सिर्फ अपने से अपने लिए
युद्धभूमि में अकेले
सभी अपने साथ अपने लिए लड़ रहे थे।
चारों ओर हाहाकार
गिर रहे शव लाचार
न गांधारी, न द्रौपदी
न विदुर, न युयुत्सु
न कृष्ण दिखे कहीं
गूंजती संजय की आवाज
धृतराष्ट्र की हुंकार l
लेटे हुए ही लड़ना है आप को
बिस्तर पर सोए हुए भी युद्ध लड़ा जा सकता है कभी!
कोई उठा कर ले जाएगा आपको युद्ध स्थल तक
वहाँ बस आप रख दिए जाएंगे
शरीर पड़ा रहेगा स्थिर
भीतर कितनी कौशिकाएं लड़ रहीं होंगी
आप नहीं जानते l
आप खड़े नहीं हो सकते
युद्ध आपके भीतर है
भीतर का युद्ध बाहरी से बहुत खतरनाक है l
इस युद्ध में न पाण्डव, न कौरव
न धर्मी, न विधर्मी
पाप पुण्य का भी मोल नहीं
धर्म ही विजयी होगा,यह निश्चित नहीं
इस नए युद्ध में जय पराजय भी नहीं
जो बच गया, जीत गया
नहीं बचा, हार गया
जीवन ही जीत है।
24 सितम्बर 1949 को पालमपुर (हिमाचल) में जन्म। 125 से अधिक पुस्तकों का संपादन/लेखन। वरिष्ठ कथाकार। अब तक दस कथा संकलन प्रकाशित। चुनींदा कहानियों के पांच संकलन । पांच कथा संकलनों का संपादन। चार काव्य संकलन, दो उपन्यास, दो व्यंग्य संग्रह के अतिरिक्त संस्कृति पर विशेष काम। हिमाचल की संस्कृति पर विशेष लेखन में ‘‘हिमालय गाथा’’ नाम से सात खण्डों में पुस्तक श्रृंखला के अतिरिक्त संस्कृति व यात्रा पर बीस पुस्तकें। पांच ई-बुक्स प्रकाशित। जम्मू अकादमी, हिमाचल अकादमी, तथा, साहित्य कला परिषद् दिल्ली से उपन्यास, कविता संग्रह तथा नाटक पुरस्कत। ’’व्यंग्य यात्रा सम्मान’’ सहित कई स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा साहित्य सेवा के लिए पुरस्कृत। अमर उजाला गौरव सम्मानः 2017। हिन्दी साहित्य के लिए हिमाचल अकादमी के सर्वोच्च सम्मान ‘‘शिखर सम्मान’’ से 2017 में सम्मानित। कई रचनाओं का भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद। कथा साहित्य तथा समग्र लेखन पर हिमाचल तथा बाहर के विश्वविद्यालयों से दस एम0फिल0 व दो पीएच0डी0। पूर्व सदस्य साहित्य अकादेमी, पूर्व सीनियर फैलो: संस्कृति मन्त्रालय भारत सरकार, राष्ट्रीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, दुष्यंतकंमार पांडुलिपि संग्रहालय भोपाल। वर्तमान सदस्यः राज्य संग्रहालय सोसाइटी शिमला, आकाशवाणी सलाहकार समिति, विद्याश्री न्यास भोपाल। पूर्व उपाध्यक्ष/सचिव हिमाचल अकादमी तथा उप निदेशक संस्कृति विभाग।
सम्प्रति: ‘‘अभिनंदन’’ कृष्ण निवास लोअर पंथा घाटी शिमला-171009. vashishthasudarshan@gmail.com
संवेदनशील समय का ऐसा चित्र जो रोंगटे खड़े कर दे ||यथार्थ की दिल को कंपा देने वाली चित्रात्मक अभिव्यक्ति |
साधुवाद !
कोरोनाकाल की विभीषका,लाचारी ,बेबसी, त्रासदी __सब कुछ को वयक्त करती सुदर्शन वशिष्ठ जी की अद्भुत कविताओं के प्रकाशन के लिये आभार!
कमेंट सबमिट नहीं हो पाया।
-नीलम कुलश्रेष्ठ