नया पराग
- धर्मपाल जैन
- 16 मई 2024
- 1 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 13 जून 2024
पराग सुवासित, सूर्ख आने लगा था।
अपूर्व स्वाद था।
रानी मधुमक्खी की देह दमकने लगी थी।
वाणी में नया ओज था।
नए शहद ने छत्ते को महल बना दिया था।
मधुमक्खियाँ मुखर थीं, निर्भीक थीं,
खुश थीं, मदमस्त मुटा रही थीं।
रानी को लगा
उसे बाहर सैर पर जाना चाहिए।
नई खूबसूरत कलियाँ देखनी चाहिए।
गदराए फूलों से रूबरू होना चाहिए।
और जायकेदार, सुगंधित, रसीले
नए पराग के लिए
उन्हें आभार कहना चाहिए।
अपने सिपहसालारों के साथ
वह गुलाब पर पसरी,
मोगरे पर बैठी,
रजनीगंधा से बतियाई।
ताजे पराग का आस्वाद फीका लगा
उसने आसपास देखा,
लोग भाग रहे थे
मधुमक्खियाँ डंक मार रही थीं।
लेखक परिचय - धर्मपाल महेंद्र जैन

प्रकाशन : “गणतंत्र के तोते”, “चयनित व्यंग्य रचनाएँ”, “डॉलर का नोट”, “भीड़ और भेड़िए”, “इमोजी की मौज में” “दिमाग वालो सावधान” एवं “सर क्यों दाँत फाड़ रहा है?” (7 व्यंग्य संकलन) एवं “अधलिखे पन्ने”, “कुछ सम कुछ विषम”, “इस समय तक” (3 कविता संकलन) प्रकाशित। तीस से अधिक साझा संकलनों में सहभागिता।
स्तंभ लेखन : चाणक्य वार्ता (पाक्षिक), सेतु (मासिक), विश्वगाथा व विश्वा में स्तंभ लेखन।
नवनीत, वागर्थ, पाखी, पक्षधर, पहल, व्यंग्य यात्रा, लहक आदि में रचनाएँ प्रकाशित।
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